तेरी दी हुई ज़िंदगी को मै इनाम समझ लूँगा
राम हो या रहीम; दोनों ही अपने नाम समझ लूँगा।
रूक जाऊंगा, जहाँ पर झूकना पड़े मेरी खुद्दारी को
उसी जगह को अपना आखिरी मुकाम समझ लूँगा।
देर ना कर हमें अपनी महफिल मे बुलाने के लिए
वरना इसे मै तेरा एक हँसी इंतकाम समझ लूँगा।
हलक से तेरे आवज ना निकली तो फिक्र ना कर
आँखों के इशारों से ही तेरी बातें तमाम समझ लूँगा।
इतनी शिद्दत से चाहता हूँ तुझे ऐ ज़िंदगी मै मेरी
जहर भी पीला दे मुझे तो मै उसे जाम समझ लूँगा।
आज फिर रावण भगा ले जा रहा है सीता को कहीं
कोई तो ये कह दे की मै ख़ुद को राम समझ लूँगा।
बाजार में नंगी हो रही है हर रोज मासूम गोपियाँ
कोई तो ये कह दे की मै ख़ुद को श्याम समझ लूँगा।
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