अंगार हो, चिराग हो,या सूरज ही क्यों न हो,चमकने के लियेजलना तो पड़ता ही है।अरे नहीं नहीं,रुको तनिक;जुगनूँ भी तो चमकता है!परवरदिगार मेहरबान है,कुछ भी हो सकता है!©www.authorbiswajit.in - BISWAJIT Mukhopadhyay
अंगार हो, चिराग हो,या सूरज ही क्यों न हो,चमकने के लियेजलना तो पड़ता ही है।अरे नहीं नहीं,रुको तनिक;जुगनूँ भी तो चमकता है!परवरदिगार मेहरबान है,कुछ भी हो सकता है!©www.authorbiswajit.in
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