कोई भी समाज जब शास्त्र को छोड़कर शस्त्र का आश्रय लेता है, तब यह उसकी अराजक मानसिकता का संकेत होता है।
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हुजूर यह भी तो टिप्पणी कर सकते थे, "तुमने दुनिया में पैदा लेकर ही गुनाह किया.. मानवजाति के विध्वंस का एकमात्र कारण तुम ही हो.. अतः अब इस ब्रह्मांड में तुम्हें साँस लेने का कोई हक नहीं!"
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महाराज : बताओ संजय इस समय क्या चल रहा है, क्या मौहोल है अभी?
संजय : महाराज, कुछ अच्छा प्रतीत नहीं हो रहा है।
महाराज (व्यथित स्वर में) : यह मेरा ही दुर्भाग्य है संजय.. हे ईश्वर आखिर ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है?
संजय (दुःखी मन से) : महाराज, इस बार केवल आप स्वयं ही इसके एकमात्र कारण नहीं हैं, बहुत हद तक मैं भी हूँ।-
सभी मित्रों-बन्धुओं को अंग्रेजी नववर्ष की शुभकामनाएं। नूतन वर्ष आपके जीवन में नई खुशियाँ लाए।
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जिस प्रकार 'तार्किक रूप' किसी का भी आलोचना अवश्य किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार 'अतार्किक तरीके' से किसी पर 'अपशब्दों' का प्रयोग करना भी 'सर्वथा' अनुचित है।
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'आलोचना' का फिर भी कोई स्तर तय किया जा सकता है, 'घृणा' का नहीं।
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जहाँ 'दर्शन' का कोई महत्व ही न हो,
'मानवता' की बात करना सरासर बेमानी होगी।-
न खोने का डर, न पाने की ख्वाहिश;
खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाएँगे।
बस 'सिद्धांतों' से कोई समझौता नहीं..-
'आसक्ति' का बुद्धिमत्ता व विद्वत्ता से दूर-दूर तक कोई संबन्ध नहीं होता।
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जिस दिन केवल स्वयं के वर्ण के संदर्भ में दंभ भरने के बजाए केवल और केवल सनातनी होने पर ही गर्व होने लगे, समझ लीजिए यह 'सनातन' के लिए सबसे बड़ा दिन होगा।
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