लगाते है भस्म करते है तिलिस्म पीते है ज़हर तभी तो नंदी रहता है उनके साथ चारो पहर हाथ में होता है उनके त्रिशूल क्रोध में भोलेनाथ सब जाते है भूल मूंडो की माला है उनको प्यारी माथे में चाँद की चांदनी लगती है न्यारी गले में सर्प और रुद्राक्ष की माला भोलेनाथ करते है सबका भला तीसरी आँख खोलकर करते है तांडव महादेव के क्रोध से मरते है दानव महादेव की केशों की जटा गंगा की धारा ,मनोरम घटा शिव जी को प्यारा है जंगल शिव की भक्ति करने वाला हो जाता है मंगल
तुझे दूंढते हुए निहारते हुए बस यही सोचता है कि मिल तू जाए फिर उन गालियों में जहां होती थी मुलाकात हमारी बस यही ढूंढता है दिल उन जज्बातों को जो पूरे न हुए यही ढूंढते हुए आवारा बन घूमता है दिल।