लगे है उनको वो हमे है पहचानते,
पर सायद अब भी वक्त और बाकी है।
लगता है उन्हें हम कुछ भी नहीं जानते,
पर सायद अब और जानना भी नहीं चाहते।
कितनी बार मिन्नते किए थे,
कितनी बार समझाया भी करे थे,
पर वक्त का तकाजा भी अजीब है,
वो फिर से पुराने यादें ताजा कर चले।
हमे अब किसीसे गीला शिकवा और नहीं,
न और इस दिल को कोई आस है,
हम अंदर ही अंदर जो गुरुर किया करते थे,
न जाने कब वो धीरे धीरे तोड़ चले।
ए जिन्दगी तुझसे बस वफा की उम्मीद की थी,
तू मेरा हो बस यही एक ख्वाइश की थी,
पर जाने क्यों वो ख्वाइश अब अधूरी हो गई,
न जाने कहां हमसे फिर गलती हो चली।
-