Bibhuti   (Bibhuti)
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Male
Joined 25 March 2017


Male
Joined 25 March 2017
6 MINUTES AGO

अगर तुम शेर हो तो कभी कभी हिरण भी
बनना जरूरी है

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AN HOUR AGO

आँखों में गहन व्याकुलता
पर प्रतीक्षा ये कैसी?
प्रत्येक बीतते दिन के साथ प्रेम
की ये दिव्य अनुभूति
दो हृदयों को एक अभेद भाव से
जोड़ तो रही है,
पर सवाल ये कैसे जो उभर रहे हैं?

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YESTERDAY AT 21:23

सुबह की ताजगी में, रात की चाँदनी में
तुम्हारा ही स्पर्श
फिर क्यों सहमा है मेरा ह्रदय आज?
अब ये सोचकर चिंतित नहीं स्तब्ध हूँ मैं,
हर बार ही जिस सादगी और सहज सरल भावों से
तुम मेरे ह्रदय को छू जाती हो,
अब मैं कैसे कह दूं मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं?

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YESTERDAY AT 16:45

उत्कट कली का प्रभाव
व्यापक चारों दिशाओं में
बन रूप पाप का जीव को
महान्धकार के दलदल में
ढकेल रहा

अश्रु-वेदना हिम बन कोमल
ह्रदय को पाषाण कर रही
देवी स्वरूपा कन्या देखो
कैसे यातना में भी मुस्कुरा रही
कैसे जी रही

धर रूप कल्कि का हे राघव
अंत करो इन दुष्टों का
नाश करो कली के
इस पाप का

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16 APR AT 23:10

तुम्हें ही चाहेगा
पर तुम्हें पाने की इच्छा भी तो नहीं
जानते हो क्यों?

मेरे इस रूप का अस्तित्व कब पंचमहाभूतों
में मिलकर विलीन हो जाए इसका भी तो
कोई भरोसा नहीं ना?
और ऐसा कतई नहीं हो सकता है
मृत्यु के उपरांत मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूं
'तुम्हारी मृत्यु की'

तुम मेरे यादों के सहारे ही जी लेना
जब जब सूर्यमुखी और उन्मुक्त गगन की पंछियों
को देखोगी, तुम मुझे ही पाओगी ।

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16 APR AT 22:07

हे माँ दुर्गा, हे माँ कामाख्या, हे माँ महाकाली
आशा की दीप मेरे मन में भी जले
ह्रदय उपवन में श्रद्धा के पुष्प खिले
मेरी बुद्धि-विवेक में आपकी ज्योत विराजे माँ
ऐसी कृपा दृष्टि कीजिए जगदम्बे
ऐसी कृपा दृष्टि कीजिए माते

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16 APR AT 13:20

In bursts of the timorous
Flagrantly yet up to snuff,
both approaches breach of
the decorum

Deep confab of the eyes,
the inciting upbeat reveals
something way too subtle

An embrace
In the depth of acceptance
Where love is loving the love
as it exhibits.

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15 APR AT 21:45

all the days
and nights disguised as
life in forethought
Saunters into an abandoned
expanse filled with
the essence of lost time

all of the highs,
and the journey
turns out to be blossoms
of a strange beauty.
and my existence,
silhouette of the still.

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15 APR AT 0:33

कभी सन्नाटे की धुन बन
ह्रदय में उतर जाता है

कभी वेदना के कुहासे में
जीव को यातना देता है

अंधेरा बात करता है

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14 APR AT 14:53

You may portray the face
of meadow,
but it's the verse inundated with
dampness of the writer's
originality that vivifies the
depth and singularity of this
easy on eye, meadow.

You may tell how the primrose
and the lupines smell like,
But it's the imagination of the
writer that sets stage for the
readers to let the fragrance
emanate from the very depth
of their hearts.

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