खोया हुन उम्मीदों के घने बादलों में,
ना जाने कब बरसेंगी।
खड़ा हूँ खुद के सवालों के कठघरे में,
ना कोई बचाने वाला, ना कोई लड़ने वाला।
बन चुका हूं एक ऐसा दरिया जो बहना तो चाहता है,
मगर अपनी धार खो चुका है।
ना दुब रहा हूँ, ना तैर पा रहा..
ज़िन्दगी एक ओर मुझे आगे पुकार रही है,
तो दूसरी ओर पीछे खींच रही।
आखिर...क्या चाहती है ज़िन्दगी।
- Bibhab Jena