अंधेरी काली रातों में सपनों से मुलाकातों में,
रोज़ मिलते हैं तुम्हारी काली जुल्फों के तले,
वहां हम दोनों जने बहुत सुकून से होते हैं ,
बिना किसी उलझन के सब मुश्किलों से दूर,
कोई भी हमारे एकांत में बाधा नहीं डालता,
तुम मुस्कुराते हुए होते हो अंदर तक खुश,
ना कोई शिकवा ना कहीं जाने की जल्दी,
मैं तुमको हंसा हंसा कर हंस रहा होता हूं,
और फिर हम सूरज को ढलते हुए देखते हैं,
पीछे कोयल और बाकी पंछी चहक रहे होते हैं,
साथ ही मालती के फूलों की खुशबू भी आती है,
और कहीं दूर बहती नदी की हल्की आवाज भी,
अब ऐसे ही कुछ पलों को यथार्थ में साथ जीना हैं,
उम्मीद है ये स्वपन जल्द ही हकीकत बनेंगे।
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