सिलवटें जो यादों की, उन्हें सुलझाए तू
कभी यूँ भी तो आए तू ।
महफिलों के हुज़ूम में, नाम तेरा पुकार लूँ
सन्नाटों के पल में, साथ मेरे मुस्कुराए तू
कभी यूँ भी तो आए तू ।
आज की कोई बात न कर, हो सके तो प्यार न कर
एक दौर पहले चलें, बदले हाथ की लकीर तू
कभी यूँ भी तो आए तू ।
शोर है, मयखाने भी हैं, महलों के ताने बाने भी हैं
कभी साथ मेरे बैठ के, खामोशी भी लाए तू
कभी यूँ भी तो आए तू ।
रंग बदलते इस मौसम में, छिप गई है जान जो
कभी मुझसे मिलने आए तो, मुझसे भी मिलवाए तू
कभी यूँ भी तो आए तू ।
वक़्त को भी इल्म न हो, ऐसा वो मुकाम हो
हाथ मेरा थाम के, फिर दुआ में जाए तू।
कभी यूँ भी तो आए तू ।
हार जीत सब यहाँ, छल कपट बेपनाह
खेल के इस मैदान में, रहबर बन जाए तू
कभी यूँ भी तो आए तू ।
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