जो सबक़ नहीं था किताबों मे,उसे आज ज़िन्दगी पढ़ा रही है.. -
जो सबक़ नहीं था किताबों मे,उसे आज ज़िन्दगी पढ़ा रही है..
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निराशा और हताशा,घेरे है हर वक़्त,घड़ी के कांटों की टिक टोक, टिक टोक...इन दोनों को अपनी कुर्सी पर छोड़,मैं काम करने के लिए उठ जाता हूँ.....©️बशर नवाज़ ✍️ -
निराशा और हताशा,घेरे है हर वक़्त,घड़ी के कांटों की टिक टोक, टिक टोक...इन दोनों को अपनी कुर्सी पर छोड़,मैं काम करने के लिए उठ जाता हूँ.....©️बशर नवाज़ ✍️
ख़ामोश हूँ,क्यूँकि ख़ामोशी,अनसुनी चीख़ से बेहतर है,©️बशर नवाज़ ✍️ -
ख़ामोश हूँ,क्यूँकि ख़ामोशी,अनसुनी चीख़ से बेहतर है,©️बशर नवाज़ ✍️
मानवता धंस गई दलदल में ,दम तोड़ गई ,मनु आराम से मखमल पे सोता रहा ।उसे हासिल होता गया सब कुछ ,मैं पाई पाई जोड़ कर भी सब खोता रहा। -
मानवता धंस गई दलदल में ,दम तोड़ गई ,मनु आराम से मखमल पे सोता रहा ।उसे हासिल होता गया सब कुछ ,मैं पाई पाई जोड़ कर भी सब खोता रहा।
डिप्रेस्ड हूँ,ऐसा कहने या लिखने पर,शायद, वो कहे की नाटक है।इसीलिए अपने जज़्बात छुपाता हूँ,कहती हैं आँखें मेरी मैं चुप रह जाता हूँ।©️बशर नवाज़ ✍️ -
डिप्रेस्ड हूँ,ऐसा कहने या लिखने पर,शायद, वो कहे की नाटक है।इसीलिए अपने जज़्बात छुपाता हूँ,कहती हैं आँखें मेरी मैं चुप रह जाता हूँ।©️बशर नवाज़ ✍️
रात स्याह है, काली,अंधेरों मे लिपटी,बेखबऱ सोते हैं,ऐसा ग़ुमान ना कर।©️बशर नवाज़ ✍️ -
रात स्याह है, काली,अंधेरों मे लिपटी,बेखबऱ सोते हैं,ऐसा ग़ुमान ना कर।©️बशर नवाज़ ✍️
हाथों की चंद लकीरों का ,ये खेल है सब तकदीरों का । -
हाथों की चंद लकीरों का ,ये खेल है सब तकदीरों का ।
आशा और निराशा के बीच ,लटकते पेंडुलम की भांति ,मैं भी झूल रहा हूं ,खुशी कम और ज्यादा गम के बीच ,गजनी में आमिर के पात्र के भांति,मैं भी सबकुछ भूल रहा हूं।©️बशर नवाज़✍️ -
आशा और निराशा के बीच ,लटकते पेंडुलम की भांति ,मैं भी झूल रहा हूं ,खुशी कम और ज्यादा गम के बीच ,गजनी में आमिर के पात्र के भांति,मैं भी सबकुछ भूल रहा हूं।©️बशर नवाज़✍️
पैसा ही मोह है ,पैसा ही माया ,इसके बिना सबकी ,पतली है काया,जेबें टटोलो,बटुआ भी खोलो ,रिश्ते हों, नातें हो,किसी को भी बोलो ,पैसा ही मोह है ,पैसा ही माया ,©️बशर नवाज़✍️ -
पैसा ही मोह है ,पैसा ही माया ,इसके बिना सबकी ,पतली है काया,जेबें टटोलो,बटुआ भी खोलो ,रिश्ते हों, नातें हो,किसी को भी बोलो ,पैसा ही मोह है ,पैसा ही माया ,©️बशर नवाज़✍️
मैं "शून्य" हूँ ना आहत , ना हर्षित ,ना ही पूर्ण कदाचित ,मैं "शून्य" हूँ ।©️बशर नवाज़✍️ -
मैं "शून्य" हूँ ना आहत , ना हर्षित ,ना ही पूर्ण कदाचित ,मैं "शून्य" हूँ ।©️बशर नवाज़✍️