रंज कुछ ऐसे सिला-ए-मसर्रत में मिले।
कुछ अदावत में कुछ मोहब्बत में मिले।
रंज कुछ जन्म से हम पर नवाज़ा गया
कुछ दौर-ए-जीस्त-ए-मसाफत में मिले।
कुछ मोल लिये रस्मों के मुखालिफत में,
कुछ अपने ही घर के विरासत में मिले।
कुछ ज़ज़्बात निभाने के मुआवज़े मिले,
कुछ मासूमियत, कुछ सियासत में मिले।
अब फर्क नही रंज और खुशी में 'बरनाली'
मंजूर है हर तौफ़ीक़,जो किस्मत में मिले।
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