Baabusha Kohli   (बाबुषा)
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तुम सिकन्दर तीन दिन के
हम कलन्दर ज़िन्दगी के

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Joined 10 December 2016


तुम सिकन्दर तीन दिन के
हम कलन्दर ज़िन्दगी के

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Joined 10 December 2016
7 OCT 2021 AT 7:08


उसके रूपकों में खिलते हैं बच्चे फूल समान
देवी की तरह विराजती है स्त्री
उसके बनाए मंदिरों में

अपनी कविता के बाहर वो मसल देता है फूल
और देवियों के मुकुट चुरा लाता है
भटकता फिरता है बेचैन यहाँ-वहाँ

उसकी मुक्ति नहीं है कहीं भी
सिवाय इसके कि वो किसी दिन
अपनी ही चुल्लू भर कविता में डूब मरे

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बाबुषा
जून, २०१५

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29 DEC 2020 AT 9:01

भक्त एक कोमल शब्द है,
अयोग्य के लिए इसका प्रयोग करना-
क्रूरता है।

क्रांति एक विराट शब्द है,
इसे महज़ बाह्य ढाँचे का बदलाव समझना-
संकीर्णता है।

प्रेम एक संकोची शब्द है,
भक्ति व क्रांति संभव कर लेता एक साथ
अकेले दम पैदा करता साहस, आस और विश्वास
कहता कुछ नहीं-

यह प्रेम की विनम्रता है।

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29 DEC 2020 AT 8:23

उतना प्रेम कभी नहीं मिल सकता
जितने की चाह है,
मगर इतना प्रेम हमेशा दिया जा सकता है-
जितने की चाह है।

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22 DEC 2020 AT 7:24

चूमना एक बारीक कला है-
जिसकी निपुणता की परख
होठों पर नहीं,

माथे पर होती है।

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20 DEC 2020 AT 8:49

‘तिलिस्म’ की पंक्तियाँ
‘प्रेम गिलहरी दिल अखरोट से।’


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अपने पैने नाखूनों को कुतर डालो
मेरी तलाश में मुझे मत नोचो
एक नदी जो सो रही है भीतर कहीं
उसे छूने की चाह में मुझे मत खोदो

मत चीरो फाड़ो
कि मेरी नाभि से ही उगते हैं रहस्य
इस सुगंध को पीना ही मुझे पीना है

मुझे पा लेना मुट्ठी भर मिट्टी पाने के बराबर है
मुझमें खोना ही अनंत आकाश को समेट लेना है

स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं
सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत



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19 JUN 2020 AT 19:30

नृत्य इस तरह किया जाना चाहिए कि जैसे कोई न देख रहा हो। गीत इस तरह गुनगुनाना चाहिए कि जैसे कोई न सुन रहा हो। फ़िल्में इस तरह देखी जानी चाहिए कि जैसे हॉल में तुम अकेले बैठे हो। कविता इस तरह लिखी जानी चाहिए कि इसे पढ़ने वाले केवल तुम हो। सोना इस तरह चाहिए कि जैसे ये संसार में अंतिम नींद हो। जागना इस तरह चाहिए जैसे यह दुनिया में पहली सुबह हो।

प्रेम इस तरह करना चाहिए जैसे यह पहला प्रेम हो। प्रेम इस तरह होना चाहिए कि बस ! यही अंतिम प्रेम हो।

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13 APR 2020 AT 20:58

पसीने में नहाए बिना, आँखों से लहू बहाए बिना शब्दों में अर्थ नहीं पैदा होगा। भीगे बिना बारिश लिखोगे तो काग़ज़ सूखा रह जाएगा।



जुलाई, २०१७

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31 MAR 2020 AT 10:37

जब कोई मुझे मूर्ख बनाने की कोशिश करता है तब मैं सोचती हूँ कि वह इतनी मेहनत क्यों कर रहा है, जब इस काम को मैं ख़ुद सबसे बेहतरीन तरीक़े से कर पाती हूँ।


आत्मकथ्य/पहली अप्रैल के पहले
मार्च, २०२०

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22 MAR 2020 AT 17:24

आपदा का यह समय बीत जाने के बाद यदि हम बचे रह जाएँ, और हम एक बदले हुए मनुष्य न हों तो मरना बेहतर है।

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15 JAN 2020 AT 12:12

जब चुभता है
आप कहना सीखते हैं,
जब धँसता है आप सीखते हैं
चुप होना।

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