सफर अनजान है, मंजिल का पता नहीं
वो साथ है तो मेरे पर, एहसास का पता नही।
ये किस्सा कहाँ और कब तक चलेगा खुदा जाने,
ना ही होश है मुझे, ना ही उसकी कुछ खबर,
क्या फिर कभी उससे मिलना होगा ?
मालूम नहीं ।
आज फिर वक्त थम सा गया है , उसकी यादों की तस्वीर के सामने रुक सा गया है,
उठा कर देखे मैंने वो पल तो जाना ;
सूरज उगता है तो मानो,वो लहराती हुई धूप सी आ जाती है,
अंधेरे के चादर में वो चांद सी नजर आती है,
जब कुछ बोलती है तो कोयल की तरह गुनगुनाती है,
चुप हो जाये तो, तो उसकी खामोशी भी सताती है।
भीगी जुल्फें हटा कर अपना चेहरा दिखाए तो, मेरी नज़रों में खुद को देख शरमा जाती है।
उसकी नज़रों में मानो मेरी पूरी दुनिया समा जाती है
उसके मुस्कुराने भर से जैसे मानो बहार सी आ जाया करती है
सुगन्ध उसकी किसी गुलाब से कम नहीं, जब भी साथ मेरे होती है, जिंदगी महक सी जाती है
उसकी परछाई मात्र भी, मुझे उसकी ओर खींच ले जाती है ।।
क्या कहूं उसकी तारीफ में अब मैं
जो मेरे दिल और दिमाग में, इस कदर छाई है
क्या वो कोई वहम है ? या कोई सच्चाई है?
सफर अनजान है,मंजिल का पता नही
क्या वो सचमुच मे साथ है मेरे ???
ये भी मालूम नहीं ।।।
:- आयुष वैष्णव
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