14 APR 2017 AT 4:51

कुछ समेटा था, कुछ बिखर फिर गयी,
मेरी मुट्ठी से यूँ फ़िसल फिर गयी,
अभी तो आगोश में लिया था एक लम्हा,
अभी वक़्त की सूई आगे निकल फिर गई।

- J