Av Singh (ए.वी. सिंह)🕉️   (Av Singh)
3.7k Followers · 23 Following

read more
Joined 13 March 2018


read more
Joined 13 March 2018

क्यों पूछते हो जानते हो जबकि मेरे हाल तुम
उदास हूॅं, बदहाल हूॅं, और दुःखी, और गुमसुम
मैं जागता हूॅं काटता हूॅं रात सारी सोच में
सोच में हूॅं डूब, देता ज़ख्मों को खरोच मैं
मैं मौन रहता मौन में ही चिल्लाता कराहता हूॅं
मन की बातें मन में रख, बाहर मुस्कुराता हूॅं
हॅंसता खिलखिलाता हूॅं

-



जो चाहोगे सब कुछ पाओगे
कुछ कहो तो इतना सा कह दो
तुम ले लो अपना कवित्व प्रभु!
मुझे धन दे दो, मुझे सुख दे दो।

-



“छंद मत्तगयंद”

खेलत कूदत नाच नचावत गीत गवावत मुश्किल भारी
हूँ बनता पशु अश्व कभी अरु हाथि कभी कभि और मदारी
हँसति वो जब खीलत है बगिया खिलती मन की फुलवारी
जीवन है तब ही फलकारि जभी दिखती बिटिया मम प्यारी

-



रात पर त्रिभंगी छंद


उजळी रूपाळी, तारां वाळी, बहुत निराळी, पण काळी
शीतळ तू बाळी, वृहत हियाळी, दुःख बांटाळी, हेताळी
राखे संभाळी, बात मनाळी, जाणे मन री बात तु ही
दुनिया दुःखकारी, पण तू म्हारी, साची साथी रात तु ही
हाँ साची साथी रात तु ही।


(अर्थ अनुशीर्षक में)

-



कितने कवियों की कविता छूटी, ज़िंदगी कितनों को विवश कर गई
कविता किसी कोने में सिमटी, और कवि-हृदय में पीड़ाएं भर गई
रोटी की जुगत में यूँ उलझा, कवि, कवि न रहा, अस्तित्व मिटा
चूल्हे की आग में कवि मरा, जठराग्नि में कविता मर गई।

-



“छंद - दुर्मिल”

कहते कब से ऋषि साधु सभी, हरि नाम जपो कलयाण करो
करते फिर भी हम पाप यहां, समझे न कभी क्षण ही भर को
सबक्यों न अभी हम सौगंध लें, अपना-अपना धर्म पालन हो
सत के पथ को अपना सब लें, घर जान जिएं जग सागर को

(अर्थ - अनुशीर्षक में)

-



“कुंडलियाँ छंद”


हर कर-कर कांटो हुई, कद आओला पीव
थां बिन सुळगै काळजो, घड़ी न लागे जीव
घड़ी न लागे जीव, सुख सबै दुःख देवे
भरतार थांरि नार, पल-पल विरह सेह्.वे
हमे जे हुई जेज, आ अब जावेला मर
झट हि पधारो नाथ, है आवे अणूती हर।

(अर्थ - अनुशीर्षक में)

-



कामगरो भारो, है लाखां रो, ट्रेक्टर म्हारो, जबरारो
लाल ललाळो, भूंगळ काळो, भभखे खारो, करारो
घण दामांरो, खेती सहारो, चलऊँ मैं जिणने मोद भरियो
वो काळज ठारो, घण गाडाळो, घणो निराळो ट्रेक्टरियो
जी घणो निराळो ट्रेक्टरियो।

(अर्थ अनुशीर्षक में)

-



मेरे संग वाली, अति निराली, ज्यों लाली, सूरज वाली
है नखराली, मदवाली, अति, अति अति अति अति रूपाली
मेधावाली, बड़ी लजाली, करे लज्जित, चंद्र-भद्र कईं
ऐसी गुणशाली, प्रणय थाली, मम प्रिया पावन प्रेममयी।

(अर्थ अनुशीर्षक में)

-



“रोला छंद”

मन क्यूँ करै उडीक, जावणिया आवै नहीं
रो, चाहे ले चीख, भरे भलां रे नैण ही
नैण् भरयां मिळ जाय, बिछड़ीया जे आपणा
क्यूँ जग करै उपाय, बात समझ म्हारी मना!

-


Fetching Av Singh (ए.वी. सिंह)🕉️ Quotes