आज की रात फिर से तुम्हारी तस्वीर देखकर गुजार लूँगा मैं सँवार सकूँ न सकूँ कुछ भी पर अपना नसीब सँवार लूँगा ये जो बात-बात पर तुम गलत समझ बैठते हो न मुझे ठीक है मैं कभी पास आऊं न आऊं तुम्हारे पर तुमसे भरपूर प्यार लूँगा
खुशनुमा महफ़िल में उदासी भरा चेहरा देखा है कोई?
मैं जिस को रोया था वो भी उसी पल को रोयी
उसे पता था 'वो' मेरे घर की ताख का दीया बन नहीं सकता
इसलिए उसने खुद को बुझा लिया अब न दीया रहा न ही और कोई
वो पलकें झुकाये थी मैं उसे देखता ही रहा उसकी जुल्फें,बाली,हरा दुपट्टा मैं उसका देखता ही रहा बस इतना सा था कि पलकें उठें और मैं गुफ़्तगू करूँ इतने में हल्की सी मुस्कुराहट हुई मैं पलकों को भूल मुस्कुराहट में उलझा फिर मुस्कुराहट उसकी देखता ही रहा
इतनी रात हो गयी इंतेज़ार किसका है? वो शख्श जो न मेरा था न ही उसका है इतनी बेचैनी क्यूँ है मुझे ज़ोर देने पर भी समझ न आता वो बेहद दूर है मुझसे फिर आगोश में ये खुमार किसका है?
मैं "रातों को" मना के अपनी ओर कर लूंगा जब तक "वो" ठहरा है सर्द हवाओं को अपनी ओर कर लूंगा ये कैसा यार है ? कुछ बोलता ही नहीं मैं आंखों से उसकी ज़ुबाँ को अपनी ओर कर लूंगा