हो मजदूर दिवस या दिन और कोई
क्या फर्क पड़ता है
बहाना पड़ता है पसीना, दो जून की रोटी पाने को
ये बेरहम पेट, साहब बातों से नहीं भरता है

उठा कर औजार अपने चल दिये हम आज फिर,
देखें यहं धूप, यहं मौसम कब तक यूँ अकड़ता है
हो सूरज गर्म कितना ही, हमारे जोश से बढ़कर गर्म नहीं
देखें आज हम भी तो आज पारा कितना चढ़ता है

बहाना पड़ता है पसीना, दो जून की रोटी पाने को
ये बेरहम पेट, साहब बातों से नहीं भरता है....

- Av Singh