22 MAR 2018 AT 10:11

देखिए,
क्या देखने से भेद समझ में आता है,
दिखता है,अपने जैसा ही,
लहू भी बहता एक है,
ये बात दिल से मान लेने में क्या जाता है।
रंग भी उसका अपने जैसा,
बोलता भी कुछ ऐसा ही है,
एक दूसरे का हाथ थामे,
ढोंगियों को ठोकर मारे,
ऐसा करने में क्या जाता है।
लिखता भी है यही भाषा,
बोलता भी यही बोल है,
देश की जब बात करे ,
तो उसका मज़हब क्यूं बीच में आता है।
भक्त है वो भी देश का,
देश का नाम सुनकर,
माँ शब्द ही जुबान पे आता है,
वो भी तो है बेटा उसी माँ का,
भाई मान ने में क्या जाता है।
क्यूं लड़ना अब धर्म के नाम पर,
क्यूं बटना अब जाति के नाम पर,
एक ही मिट्टी की ऊपज है सभी,
फिर साथ बढ़ने में क्या जाता है।
अब तो जिद छोड़ दो,
दिल को दिल से जोड़ दो,
बहुत हो चुका ये धर्म जाति का खेल,
इंसान बनने में क्या जाता है।

- Asmit Maurya