Asmit Maurya   (Asmit Maurya)
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http://asmitmaurya.blogspot.com
Joined 15 November 2017


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Joined 15 November 2017
2 JAN AT 12:36

एक रोज चिढ़कर
कहा था न तुमने कि
"जाओ ढूंढ लो
दुनिया सारी नहीं मिलेगा
तुमको कोई,
मेरे जैसा"

मैंने उस रोज
कुछ भी कहा नही तुमसे,
पर आज मैं तुमसे एक बात
साफ साफ कह देना चाहता हूं,
वो ये कि,

"मैं नहीं हूं
किसी तुम जैसी की तलाश में
मेरी हर तलाश
तुमसे शुरू होकर
तुम पर ही खत्म होती है;

मैंने जिया है तुम्हारे साथ
अपना अल्हड़पन,
मैं तुम्हारे साथ साथ ही
हमारे जीवन के उथल पुथल को
समतल करता चल रहा हूं,
मैं ढलती उम्र में
धीमे कदमों और दुखते घुटने के साथ,
हर तलाश में
तुम तक ही पहुंचना चाहता हूं।"

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15 SEP 2022 AT 22:08

सब कुछ ऐसे ही उलझा हुआ है,
इन्हीं बिजली के तारों की तरह,
कि ओर छोर ही समझ के परे है,
और अंधेरा ये भी तो कम नहीं है
इन रास्तों में।
पर एक तुम हो,
इन्हीं रास्तों पर स्ट्रीट लाइट की तरह,
हर बार , बार बार,
मुझे रास्ता दिखाती,
बताती की इन रास्तों के
सबसे अंधेरे वक्त में भी
तुम साथ हो।

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8 SEP 2022 AT 14:42

प्यार,खुशी,हँसना, बोलना,
जीवन के ये सारे मोती,
जिस धागे में पिरोए हैं,
वो धागा तुम हो।
मेरी सारी कहानियां,कविताएं,नज़्म,
शब्द दर शब्द,
इनका जो सार है,
वो सार तुम हो।
तुम ही हो,
जिसके लिए मैं नज़्म लिखता हूं,
लिखा हुआ गुनगुनाता हूं,
चलते चलते दो पल रुककर,
तुम्हे सोच मुस्कुराता हूं।

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5 SEP 2022 AT 0:34

रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल,
किसी इंसान का,
एक रोज गायब होकर,
कहानियों में बदल जाना,
और हमारा,
उन कहानियों को,
स्वीकार कर लेना ही,
जीवन है।

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23 JUN 2022 AT 11:31

संघर्षों में,
इस पार से उस पार का सफर,
कितना खूबसूरत लगता है,
दूसरों का सुनने ,
देखने में।

पर ख़ुद के संघर्षों से,
भला इतनी नाउम्मीदी क्यों।

क्यों नहीं लगता कि,
ये जो हजार मुश्किलें सह,
वो इंसान,
आज मुस्कुरा रहा है,
कल आप भी तो,
सब पार कर जाएंगे।


पार कर जाएंगे न,
है भरोसा न,
खुद पर,
तो फिर,
किस बात का खौफ है,
क्यूं डरते हैं,
कि आप नहीं कर पाएंगे।


ये खौफ सारे,
इतने विशाल तो नहीं,
कि एक रोज तुम,
निकलो हिम्मत करके,
और ये तुमको,
रोक भी पाएंगे।

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19 APR 2022 AT 23:54

नफ़रत.....

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5 OCT 2021 AT 2:57

एक आदर्श समाज की कल्पना.......

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1 AUG 2021 AT 1:27

दोस्त....

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31 MAY 2021 AT 3:22

क्या हो,
जो किसी सफर की राहों पर,
हम तुम,
बस यूं ही टकरा जाएँ।

क्या हो,
जो टपरी पर शुरू हुआ,
चाय का सिलसिला,
घर पर वक्त बेवक्त की चाय में,
बस यूं तब्दील हो जाएँ।

क्या हो,
जो किसी शाम हम तुम,
साथ में बैठे,
और बातों बातों में ही,
सुबह हो जाएँ।

क्या हो,
जो ये रोज रोज की मुलाकात,
जिंदगी भर के साथ में,
बस यूं ही बदल जाएँ।

क्या हो,
जो किसी रोज हम तुम,
कुछ यूं एक हो जाएँ,
की बस फिर न अलग हो पाएँ।

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18 MAY 2021 AT 3:05

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