हुस्न, हुनर या आम जिंदगी,
एक शाम सभी को ढलना है,
तेरी, मेरी या उसकी हो बात,
एक रोज हमें खामोश होना है।
खत्म होगी मय जिस घड़ी,
प्याले को भी तन्हा होना है,
फिर भी बंद न होगा मयखाना,
आखिर में जी भी बहलाना है।।
ख्वाहिश के पीछे सब या,
ख्वाहिश सब के पीछे हैं?
भाड़ दौड़ में सब भूल गये,
कैसे हमको जिन्दा रहना हैं?
-