मंजिल की जुस्तजू नहीं थी वो रहबर ए कामिल था ठहरा नहीं कहीं भी बस हाथ मिलाता गया वो मुसाफ़िर था सफ़र को निकला था - Ashu Sharma (किताब -ए- ज़िदगी)
मंजिल की जुस्तजू नहीं थी वो रहबर ए कामिल था ठहरा नहीं कहीं भी बस हाथ मिलाता गया वो मुसाफ़िर था सफ़र को निकला था
- Ashu Sharma (किताब -ए- ज़िदगी)