Ashu Sharma   (Ashu Sharma (किताब -ए- ज़िदगी))
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Joined 20 October 2017


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9 APR 2022 AT 21:22

रास्ता ले जाएगा मुझ को कहाँ
इक क़दम जब आप चल पाता नहीं

आशु शर्मा

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25 AUG 2021 AT 12:55

कभी छुपा के कभी सामने बहाए हैं
हुए बेहाल ये मोती न रोक पाए जब

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14 AUG 2021 AT 11:45

टूटती रोज़ है बंदिशों की कड़ी
फिर नयी क़ैद में देखता हूँ उसे

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6 AUG 2021 AT 15:00

इक छोटी सी बात थी
किश्तों में भी मुकम्मल न हुई

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26 MAY 2021 AT 13:42

खूबसूरत ख़्वाब

खूबसूरत है पर ख़्वाब है
काश हकीकत होती

लफ्ज़ खुद भी कभी बोलते
और लफ्ज़ों की कीमत होती

अश्क भी कभी मुस्कराते
और नमी आँखों की जीनत होती

दिल दिल की सुनता और
गर मान लेता तो गनीमत होती

कर्म ही बस दौलत होते
और बस कर्मों की वसीहत होती

ज़रूरी गैर-ज़रूरी से परे
हर चीज़ की अहमियत होती

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23 MAY 2021 AT 17:33

उसने तल्ख नज़रों से यूँ देखा है
राज ए मिज़ाज समझ नहीं आता

चल पड़ा हूँ मंजिल तक पहुँचने को
पर रस्ता मेरी मंज़िल को नहीं जाता

सूरज रोज़ उगता है और डूबता भी
मेरे हिस्से में दिन रात नही आता

ख़्याल तो रहता है हर पल तुम्हारा
पर अब मुझे तुम्हारा ख़्वाब नहीं आता

जिसे छोड़ना हो छोड़ ही जाता है
छोड़ने वालों का रोग नहीं पाला जाता

आशु शर्मा

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20 MAY 2021 AT 20:48

मुहब्बत यकीन माँगती है
शक के साये तले नहीं रहती

न ही शौहरत की ख़्वाहिश उसे
और बदनामी से भी नहीं डरती

सही और गलत की हद से परे
दिल अपना तंग नहीं रखती

मुसलसल सफर में रह कर भी
ज़िक्र ए थकान नहीं करती

आँख भर देखे तो जान आ जाए
मुहब्बत कभी बेजान नहीं करती


आशु शर्मा

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2 FEB 2021 AT 22:45



मैं तो खुश्क आँखों से रोया था
उसने झाँक के न अन्दर देखा

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21 DEC 2020 AT 22:05

ज़िन्दगी हकीकत में कैसे जी जाती है
हर बात किताबों में लिखी नहीं जाती है

मेरी दुनिया में कल समां कैसा हो
ख्यालों में मेरी सोच बही जाती है

चोट का उस पे जाने क्या असर होगा
वक़्त के मरहम से हर चोट सही जाती है

मना कर न सकोगे तुम्हें वो न देखे
जहाँ से रोको नज़र वहीं जाती है

माँगने पर भी जो नहीं मिलता
वही कसक बस दिल में रही जाती है

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20 DEC 2020 AT 22:00

चाहता तो हासिल कर लेता
हौंसला ए कारोबार जुनून न दे पाया मुझ को 

न मैं उस से कभी जीत सका
और उस के सिवा कोई हरा न पाया मुझ को 

ता जिन्दगी लड़ी है इक जंग सच से
वह अपने हिस्से के इल्ज़ाम न दे पाया मुझ को 

अंजाम से कितना बेख़बर था वो 
कोशिशें की पर झूठ न ठहरा पाया मुझ को

खुशी दे कर खुशी ही बटोरी है
चाह कर भी वह गम न दे पाया मुझ को

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