इश्क़ करने का अब नया शौक क्यों पालिये?
जो पा लिए इश्क़ फिर क्यों बंदिशें डालिये,
अख़बार कि ख़बर हो तो बनी रहे !
आप आ एक बार नज़र तो डालिये ,
मुस्कुरा तेरी आवाज़ सुन अब भी खुश है,
ज़रा क़रीब आ फिर उसे जिंदगी में उतारिये,
एतराज़ किस बात का जब गुमान है इश्क़,
सौ-सौ गलतियों को अपने एहम से झाड़िये,
रोज़ रब के दर पर वो नज़र आता है,
शिकायतों का एक लिफ़ाफ़ा लाता है,
झोली उसकी उसने खाली रखी है,
जुबां पर सिर्फ एक मन्नत आधी रखी है,
पूरी होने मैं वो क़तराती है,
आधे इश्क़ कि चुभन उसे सताती है,
करवटों की ये नींद बिस्तर पर मायने नहीं रखती,
इश्क़ होता क्या है ये नज़रों से बतलाती है !
तकलीफ़ उसने होठों पर रख मुस्कुराना सीखा है,
अड़ियल है अपने घावों पर नमक लपेट यादों को ज़िंदा सीता है,
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