Ashish Bhandari   (aashishaa)
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Joined 14 December 2017


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Joined 14 December 2017
17 AUG 2022 AT 21:49

प्रेम में हम दोनो कितने झूठे थे
देखो ना
तुम भी खुश हो और मैं भी जिंदा हूं।

एक वक्त ही था जिसे सब पता था,
वो भी गुजर गया
अब वकालत भी करेगा तो कोन?
बेचारा,
हारा इश्क।

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10 APR 2022 AT 0:35

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3 APR 2022 AT 15:15

वक्त
कितना अजीब है ना
अभी था, अभी गुम
पकड़ किसी के आता नहीं
समझ कोई पाता नहीं
पर बच कोई नही सकता
ना चाहते हुए भी, है सबका हिस्सा
है तुम्हारे नाम, पर तुम बाट नही सकते
हा! साथ बैठ के बीता सकते हो
पर किसी का चुरा नही सकते।

वक्त का नही है कोई स्वामी
पर सब है सारथी इसके
आप इसकी दिशा नियुक्त कीजिए
ये आपकी दशा नियुक्त करेगा।

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23 MAR 2022 AT 0:05

इल्जाम है मुझपर के मैं तुम्हारे गम में लिखता हूं
इल्जाम को झुठलाने की कोशिश बरकरार हैं।

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9 MAR 2022 AT 20:23

बैठा जो कुछ देर मैं अपने साथ
कुछ और नहीं बस खुद को टूटा पाया
देखा जब गौर से जरा आईने में
दरारों के सिवा कुछ समझ नहीं आया।

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19 FEB 2022 AT 14:11

मैं ज्यादा नहीं कम ढूढता हूं
खुशी के समंदर में गम ढूढता हूं
ये शौक है या कुछ तकफील है मुझे
लोग भी कहते है के कुछ मर्ज है तुझे
पर ऐसा क्या है जो दिखाई नहीं देता
दर्द तो है पर सुनाई नही देता
कहा गई वो खुशी कहा गया वो मजा
कट रही जिंदगी जैसे एक सजा

निकालो मुझे इस दलदल से
खामोश पड़ी इस हलचल से
धूप है तो हवा भी होगी
मर्ज है तो कोई दवा भी होगी।

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19 FEB 2022 AT 2:50

अपनो को ऐसे सताया नही जाता
अब ऐसा भी क्या है जो बताया नही जाता
दिल से ये पत्थर हटा और बोल दे
आज जो वो पिंजरा है उसे खोल दे
होने दे जुदा आशु को पलक से
देखे हम भी जो हलचल सी है हलक से

लब खोल अब उन्हें आजाद कर
छोड़ कर सब बस चैन की सास भर।

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19 FEB 2022 AT 2:00

मत पूछो ये हमसे की कैसे बाजी हारी है,
गहरी ये रात हो गई अब चांद की बारी है।

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1 FEB 2022 AT 18:33

एक आखरी कोशिश और कर
दिल दिमाग को जोड़ कर
कैद की सलाखे तोड़ कर

पंख फैला और उड़ जा
अपनी आजादी का जश्न मना।— % &

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6 AUG 2021 AT 17:57

खोजता है जिसे तू, उसका होना बहुत जरूरी हैं।
खुद को ढूंढने के लिए, खोना बहुत जरूरी हैं।।

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