स्याह रातों को जागना अच्छा नहीं होता
बंद दरवाजों से झांकना अच्छा नहीं होता
इब्तिदा-ए-इश्क़ में रूबरू होना पड़ता है
यूं छुप छुप के ताकना अच्छा नहीं होता
तेरे हुस्न के चर्चे हैं अब सबकी ज़बान पे
यूं सर-ए-बाज़ार नाचना अच्छा नहीं होता
देखना मुज़िर है तुझे शब- ए -महताब में
चांद का चांद से सामना अच्छा नहीं होता
सहर अंगड़ाई न लिया कर मेरे दरीचे पे
के नशे में दुआ मांगना अच्छा नहीं होता
थोड़ा ठहर, वो खुद आये गा तेरी जानिब
हसीनों के पीछे भागना अच्छा नहीं होता
कुछ करो तो सुलझा दो खम-ए-ज़ुल्फ़ को
दिल को ऐसे उलझाना अच्छा नहीं होता
किनारे पर रहो तो ही सुकून-ए-ज़िन्दगी है
दरिया-ए-हुस्न में नहाना अच्छा नहीं होता।।
- ख़ाक