रो रो के कितने मौसम-ए-ख़िज़ाँ गुज़ार लिएतुम आ भी जाओ अब बाद-ए-नौ-बहार लिए।। - ख़ाक
रो रो के कितने मौसम-ए-ख़िज़ाँ गुज़ार लिएतुम आ भी जाओ अब बाद-ए-नौ-बहार लिए।।
- ख़ाक