16 AUG 2018 AT 21:20

निश्छल होकर भी कैसे,
दुनिया को जीता जाता है।
कैसे सुमधुर शब्दों से भी,
शत्रु हृदय घबराता है।।

चला काल का मृत्यु बाण अब,
प्राणों को संग चलना होगा।।
अंतस व्याकुल है सबका,
अब हृदय वह्नि को जलना होगा।।

- ख़ाक