कब जाना है दफ़्तर को, किस वक़्त घर को आना हैसुखा देना है आंखों में या अश्कों को बहाना हैकहाँ पर बाग है गुल का, कहाँ पर क़ैद-ख़ाना हैफासला रख के मिलना है या उनसे लिपट जाना हैहाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ।। - ख़ाक
कब जाना है दफ़्तर को, किस वक़्त घर को आना हैसुखा देना है आंखों में या अश्कों को बहाना हैकहाँ पर बाग है गुल का, कहाँ पर क़ैद-ख़ाना हैफासला रख के मिलना है या उनसे लिपट जाना हैहाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ।।
- ख़ाक