7 JUL 2017 AT 1:14

हक़ीम को पता है के मैं बीमार हूं
पर उसका नहीं तेरा तलबगार हूं

तू भी मत बताना ये राज़ अब कभी
किसी से नहीं कहा के गुनाहगार हूं

कोई पूछता नहीं अब ख्वाइशें मेरी
के तू ही पूछ ले कुछ, मैं बेकरार हूं

मुझसे दूर ही रहना ए खंज़र वालो
टूटती ही सही , अभी भी तलवार हूं

जिंदगी इतरा, तुझे जितना शौक है
के हर फ़न में साथ देने को तय्यार हूं

तू है बने, संवरे, ख़ूबसूरत से घर जैसा
मैं बिखरा, उजड़ा, लुटा सा बाज़ार हूं

आओ सब मिल कर मेरा क़त्ल कर दो
जान जो गये हो के लिखता अख़बार हूं

- ख़ाक