भटकते भटकते कही दूर चला जा तू
जिस बक्से में कैद है, दुनिया तेरी
तोड उसको, और फिर भटक जा जरा।
जिस शाम तेरी पर्चाई तु भूलेगा
तब लौट आना, जा तेरा घर है।
जब सब लूट जाएगा तेरा
तू फिर भी बडना आगे ज़िन्दगी में।
भूल जा अपनी पहचान तू
फिर बनाना अपना आसियाना, काबलियत पर।
ना करना वादा, साथ निभाने का
बिक्रेगा तू, बिन आवाज के।
जीले थोडा, जब कही रूखे तू
मौत भी आए, तो लग जाना गले थोडा, मुस्कुराके।
हमे यूही नहीं बुलाते, भटका हुआ इन्सान॥
- Ashiq