वस्ल की रात को कुछ इस तरह से समझो तुमकि कभी सुब्ह न हो, हो तो शर्मख़्वाँ हो रहेकि तुम्हें उसके हुए से हिजाब रखना था - चेतस
वस्ल की रात को कुछ इस तरह से समझो तुमकि कभी सुब्ह न हो, हो तो शर्मख़्वाँ हो रहेकि तुम्हें उसके हुए से हिजाब रखना था
- चेतस