अरविन्द दाँगी 'विकल'   (अरविन्द दाँगी 'विकल')
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इक कागज़ और इक कलम... बस इतना ही हैं मेरा जीवन...✍️🇮🇳
Joined 14 August 2017


इक कागज़ और इक कलम... बस इतना ही हैं मेरा जीवन...✍️🇮🇳
Joined 14 August 2017


मैं बहुत कुछ पाकर बहुत कुछ खो चुका हूँ
अब कुछ नहीं है मेरे पास खोने को
अब तो बस कर्म किये जा रहा हूँ निरन्तर
बिना किसी फल की चिंता के यहाँ

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आमजन से दुर्व्यवहार
नित होता है भ्रष्टाचार

मैं कई बार आवेश में आकर बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ
पर ये कलम है जो मुझे मर्यादा में रहने को मजबूर कर देती है

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पहले जो कोचिंग थी
वो अब स्कूल हो गयी है
क्योकि उसमें कमाई कम
और स्कूल में ज्यादा हो रही है

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चलोगे तजकर मोह तो वो सबकुछ मिलेगा
जिसका मोह आपने त्याग दिया था।

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शून्य से लेकर अनंत तक शाश्वत है शिव
धरा से ले अंतरिक्ष तक विराजित है शिव
शक्ति के अधिष्ठाता प्रकृति के परमप्रिय
हर कण - हर क्षण में सुशोभित है शिव

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जब लोग आपकी तरफ उँगली उठाये
तो आप उनसे बहस मत कीजिये...

अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ते हुए
सफलता के मानक स्थापित कीजिये...

यह तरीका बहस से ज्यादा सार्थक है
बस यही कीजिये...कर्मपथ पर चलिये...

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कब तक दूसरों से वैमनस्य ये ईर्ष्या ये घृणा रखेंगे।
सोच छोटी यू रखकर खुद के विचारों में विष भरेंगे।।
ईश्वर ने दिया यह मनुजतन कि चुने हम मार्ग भक्ति।
बस भाव भक्ति ही रखकर हम यह जीवनैया तरेंगे।।

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कुछ इंतजार बहुत लंबे होते है जो अनवरत जारी रहते है।
ये इंतजार क्षण में दिन या दिन में महीनों से प्रतीत होते है।।
शायद ये इंतजार तपस्या से फलीभूत होंगे या नहीं कभी।
लेकिन ये इंतजार मित्रता में सुदामा को कृष्ण से मिलाते है।।

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महादेव सकल तो जग जीवित है।
महादेव विकल तो जग मूर्छित है।।
महादेव चित्त तो भय किंचित न।
महादेव रुष्ट तो क्षय निश्चित है।।

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आजकल का समय बड़ा ही विचित्र है
👇
आप अच्छे हो तो दुत्कारे जाओगे
और बुरे हो तो पुचकारे जाओगे

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