मिज़ाज में उसके हया झलकती है!!
हया नहीं उसके किरदार में फिर भी-
खुदाया, शहर कि हवा में कुछ तो नया-सा है
ख़बर है कि कोई लड़का कुछ पल रोया था!!-
चाय पीने का सबब यह नही कि मुझे पसंद है
उसके हाथों से बनी होती है .... तो पी लेता हूं-
उसने मुझे अनदेखा करना ना जाने कब सीख लिया
बा वक्त वो एक परिंदे कि तरह मेरी ताक में रहती थी
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" मेरी फिक्र को वो बंधीसे मान बैठी
हर मुलाकात पर वो दूरी बांध बैठी
मेरी क्या मजाल उसके सामने ए-खुदा
मेरे सामने वो गैरों को अपना मान बैठी,
" दो दिनों कि बात थी....भूल जानी थी
वो उन बातों को अपना कल मान बैठी
बिला वजह वो परेशान-सी रहती
मेरी नज़र को वो खंजर जो मान बैठी,
" मैं गवाही दूं भी तो किस चीज की दूं
मेरी बातों से ही वो मुझे कातिल मान बैठी
मुझे नही लगता कुछ होने से रहा अब
वो मेरे किरदार को अजीब जो मान बैठी,
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कीमत कुछ कम-सी महसूस हो रही थी,
मैंने खुद को तन्हा रखना शुरू कर दिया!— % &-
वक्त लग जाता है अब उसे तराशने में,
उसका रूआँसू चेहरा मुझे लिखने नहीं देता!
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