दुनिया के सवेरों में कोई अकेला ही दौड़ लगाएगा,
कोई आधी रात में भी चुपके से गुनगुनायेगा,
कोई पिघलती शाम सा शर्माएगा,
कोई घनघोर बारिश के बादल सा रौब दिखायेगा,
नदी में बहता हुआ सा कोई तिनका बन जायेगा,
कोई नदी को रोकने वाले बाँध सा मजबूत बन जायेगा,
हर के रास्तों में कोई बात अलग होती है,
चलते रहो उसपे तो देर से ही सही,
ख़ुशी से मुलाकात ज़रूर होती है,
हल्की सी नौका बन के उफनती दरिया पार कर जाओ,
क्या पता कल का,
कोई मिट्टी के ढेले सा पानी में घुल जाएगा,
कोई आकार बढ़ा के हरा भरा द्वीप बन जाएगा।
- Arun Prakash Singh