मैं कवि विरह का ग़म लिखतामैं हँसी-ठिठोली कम लिखतासब लिखते हैं ऋतु सावन कीमैं पतझड़ का मौसम लिखताजो फिर से जीना चाहूँ मैंवह गाँव गली बचपन लिखताकुछ है जो मिटे मिटाये नामैं प्रिये तेरा चुंबन लिखताहूँ स्थिर नहीं समुंदर सामैं लहरों सा चँचल लिखतासंध्या से धूप चुराकर केउदयाचल में दिनकर लिखताएक क्षण में ही मर जाता हूँमैं अगले क्षण जीवन लिखता -
मैं कवि विरह का ग़म लिखतामैं हँसी-ठिठोली कम लिखतासब लिखते हैं ऋतु सावन कीमैं पतझड़ का मौसम लिखताजो फिर से जीना चाहूँ मैंवह गाँव गली बचपन लिखताकुछ है जो मिटे मिटाये नामैं प्रिये तेरा चुंबन लिखताहूँ स्थिर नहीं समुंदर सामैं लहरों सा चँचल लिखतासंध्या से धूप चुराकर केउदयाचल में दिनकर लिखताएक क्षण में ही मर जाता हूँमैं अगले क्षण जीवन लिखता
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बड़े संभल के चलते हो तुम आईनों से बच के चलते हो पहुँच है तुम्हारी सितारों तकजुगनुओं को कुचल के चलते हो किस नाम से पुकारें हमरोज़ सूरत बदल के चलते होखुल जायेगा भेद एक दिनझूठ पहलू में रख के चलते होमिल गया होगा ज़रूर कोईआजकल हम से कट के चलते हो -
बड़े संभल के चलते हो तुम आईनों से बच के चलते हो पहुँच है तुम्हारी सितारों तकजुगनुओं को कुचल के चलते हो किस नाम से पुकारें हमरोज़ सूरत बदल के चलते होखुल जायेगा भेद एक दिनझूठ पहलू में रख के चलते होमिल गया होगा ज़रूर कोईआजकल हम से कट के चलते हो
चूम कर तुमने रख दिया था किताबों में जिन्हेंफूल वो ख़्वाबों से जग जाते तो कहाँ जाते -
चूम कर तुमने रख दिया था किताबों में जिन्हेंफूल वो ख़्वाबों से जग जाते तो कहाँ जाते
पथिक बाट से चले गये सब, फिर क्यों पथ पर नयन पसारूँजीवन तुझसे हार क्यों मानूँ -
पथिक बाट से चले गये सब, फिर क्यों पथ पर नयन पसारूँजीवन तुझसे हार क्यों मानूँ
अहल-ए-वफ़ा जो लोग थे जाने कहाँ गयेहम भी मुराद ले के न जाने कहाँ गयेपहलू में बैठिये तो बताते हैं क्या हुआसाक़ी शराब और मैख़ाने कहाँ गयेमुद्दत हुई है तुम पे कुछ लिक्खा नहीं गयादेखूँ वो मेरे जख़्म पुराने कहाँ गयेशीशे की जात चुटकियों में ख़ाक हो गयेपत्थर को हम गले से लगाने कहाँ गयेकिसने चुरा ली घर के चराग़ों से रौशनीबेख़ौफ़ घूमने के जमाने कहाँ गयेअब किससे आशनाई निभायें यहाँ पे हमदुश्मन जो मेरे थे वो न जाने कहाँ गये -
अहल-ए-वफ़ा जो लोग थे जाने कहाँ गयेहम भी मुराद ले के न जाने कहाँ गयेपहलू में बैठिये तो बताते हैं क्या हुआसाक़ी शराब और मैख़ाने कहाँ गयेमुद्दत हुई है तुम पे कुछ लिक्खा नहीं गयादेखूँ वो मेरे जख़्म पुराने कहाँ गयेशीशे की जात चुटकियों में ख़ाक हो गयेपत्थर को हम गले से लगाने कहाँ गयेकिसने चुरा ली घर के चराग़ों से रौशनीबेख़ौफ़ घूमने के जमाने कहाँ गयेअब किससे आशनाई निभायें यहाँ पे हमदुश्मन जो मेरे थे वो न जाने कहाँ गये
क्यों इल्ज़ाम मढ़ें साक़ी पर, ये क़सूर तो अपना थाउसने प्याला सही थमाया, हमसे साग़र छूट गया -
क्यों इल्ज़ाम मढ़ें साक़ी पर, ये क़सूर तो अपना थाउसने प्याला सही थमाया, हमसे साग़र छूट गया
जाते-जाते ज़माने का वहम तोड़ गया,मर गया सिकंदर और मुट्ठी खुली छोड़ गया।फ़लसफ़ा ये कि जिस-जिस ने भी दुनिया जीती,एक कफ़न ले गया बाक़ी यहीं पे छोड़ गया। -
जाते-जाते ज़माने का वहम तोड़ गया,मर गया सिकंदर और मुट्ठी खुली छोड़ गया।फ़लसफ़ा ये कि जिस-जिस ने भी दुनिया जीती,एक कफ़न ले गया बाक़ी यहीं पे छोड़ गया।
भीड़ से बेहतर है कि सुनसान में रह लूँसूरज सा अकेला मैं आसमान में रह लूँग़र लीक से चलना परे गुस्ताख़ियों में हैचल कर के समंदर पे ग़ुस्ताख़ मैं रह लूँसब एक-एक कर के मुसाफ़िर चले गयेरस्ता हूँ फिर किसी के इंतेजार में रह लूँअर्सों के बाद घर में लगाया है आईनापहले जरा खुद का इस्तक़बाल मैं कर लूँलहरों से खेलता हूँ, हो जाता हूँ दफ़नहर बार सोचता हूँ कि औकात में रह लूँहै वक़्त ही कहाँ कि किसी से जिरह करूँदो-चार रोटियों के बस जुगाड़ में रह लूँ -
भीड़ से बेहतर है कि सुनसान में रह लूँसूरज सा अकेला मैं आसमान में रह लूँग़र लीक से चलना परे गुस्ताख़ियों में हैचल कर के समंदर पे ग़ुस्ताख़ मैं रह लूँसब एक-एक कर के मुसाफ़िर चले गयेरस्ता हूँ फिर किसी के इंतेजार में रह लूँअर्सों के बाद घर में लगाया है आईनापहले जरा खुद का इस्तक़बाल मैं कर लूँलहरों से खेलता हूँ, हो जाता हूँ दफ़नहर बार सोचता हूँ कि औकात में रह लूँहै वक़्त ही कहाँ कि किसी से जिरह करूँदो-चार रोटियों के बस जुगाड़ में रह लूँ
देख इरादे महापुरुष के, मौत बहुत शर्मिन्दा हैदेह मर गयी होगी लेकिन "अटल" हमेशा ज़िंदा है। -
देख इरादे महापुरुष के, मौत बहुत शर्मिन्दा हैदेह मर गयी होगी लेकिन "अटल" हमेशा ज़िंदा है।
छोड़ गया अपनी चिंगारी,प्रतीची में लालिमा भारी,करने को कल की तैयारी,नभ से दूर गया,सूरज डूब गया। -
छोड़ गया अपनी चिंगारी,प्रतीची में लालिमा भारी,करने को कल की तैयारी,नभ से दूर गया,सूरज डूब गया।