हाल दिल का हमारे कैसा है
क्या कहें के ये कैसे टूटा है
टूटकर दिल बिखर गया ऐसे
जैसे लगता है कोई शीशा है
इस क़दर हो गया है वो रुसवा
हर जुबाँ पे उसी का क़िस्सा है
रूह उसकी है मर गई फिर भी
उसको लगता है के वो ज़िन्दा है
खोया रहता है बस ख़यालों में
शख़्स वो भीड़ में भी तन्हा है
होता है वो उदास अंदर से
आदमी जो बहुत ही हँसता है
ऐ 'प्रखर' मत कुरेदना इसको
जख़्म दिल का अभी भी ताज़ा है
- अरुण चौबे ‘प्रखर’