Arun Chaubey   (अरुण चौबे ‘प्रखर’)
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Joined 6 June 2017


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14 FEB AT 14:41

हमको वीणावादिनी वरदान दे दो!
हम सभी अज्ञानियों को ज्ञान दे दो!

वाटिका का पथ जो भूले वह भ्रमर हैं,
हम पतन की ओर प्रतिक्षण अग्रसर हैं;
पथ दिखाकर नव हमें उत्थान दे दो!
हमको वीणावादिनी वरदान दे दो!

नित सुरों से हो रहा है युद्ध लगता,
वेदना से कण्ठ भी अवरुद्ध लगता;
गा सकें हम ऐसा कोई गान दे दो!
हमको वीणावादिनी वरदान दे दो!

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13 FEB AT 23:47

कूल से सरिता के मिलती नाव है,
चित्त के सान्निध्य में ठहराव है;
यह किसी से कुछ नहीं है माँगता,
प्रेम तो केवल समर्पण भाव है।

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20 JAN AT 23:34

मिथ्या जगत है सत्य का दर्पण हैं राम जी,
पाषाण को भी प्रेम का अर्पण हैं राम जी;
मर्यादा की प्रतिमूर्ति हैं पुरुषों में हैं उत्तम -
कर्तव्य के प्रति पूर्ण समर्पण हैं राम जी।

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19 NOV 2023 AT 19:14

हो कोई भी मुझसे हो पाती नहीं,
चापलूसी मुझसे हो पाती नहीं;
है बदल पाना मुझे मुश्किल बहुत-
जी-हुज़ूरी मुझसे हो पाती नहीं।

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10 NOV 2023 AT 0:38

लगाकर हाथ मिट्टी को कई सामान गढ़ता है,
हुनर के मामले में नित नए प्रतिमान गढ़ता है;
उजाला बाँटता सबको अँधेरा भूलकर अपना-
छुपाकर दर्द वो अपने सदा मुस्कान गढ़ता है।

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2 NOV 2023 AT 1:54

नहीं हैं शब्द कैसे मैं करूँ गुणगान नारी का,
बनाकर स्वयं अनुरागी हुआ भगवान नारी का;
लिखा है ज्ञानियों ने भी हमारे धर्मग्रंथों में -
वहीं पर देवता रहते जहाँ सम्मान नारी का।

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28 OCT 2023 AT 20:54

सुख में होता है कभी, दुःख में कभी व्यतीत।
सुख-दुःख के इस फेर में, जीवन जाता बीत॥

आगे-आगे सुख चले, पीछे दुःख भी संग।
दोनों ही समभाव से, जीवन के हैं अंग॥

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2 OCT 2023 AT 15:31

गाँधी जी को आजकल, करते वो भी याद।
जो ये भी ना जानते, क्या है गाँधीवाद॥
क्या है गाँधीवाद, जानना बहुत ज़रूरी।
गाँधी जी का नाम, नहीं कोई मज़बूरी॥
गाँधी है वो सोच, बनी जो जग में आँधी।
इतना भी आसान, नहीं बन पाना गाँधी॥

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8 AUG 2023 AT 23:25

न हो स्पष्ट जब कुछ भी किसी से क्या कहे कोई,
विवशता की पराकाष्ठा हो यदि तो क्या करे कोई;
कठिन होता नहीं लड़ना अपरिचित शत्रु से लेकिन-
सगे-सम्बन्धियों से ही भला कैसे लड़े कोई।

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2 JUL 2023 AT 23:38

भले हो जाए कुछ भी यह कदाचित हो नहीं सकता,
कभी भी पुष्प पतझड़ में सुवासित हो नहीं सकता;
असहमत लाख हो कोई अटल यह सत्य है लेकिन -
हो पीड़ित सत्य कितना भी पराजित हो नहीं सकता।

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