मिथ्या जगत है सत्य का दर्पण हैं राम जी, पाषाण को भी प्रेम का अर्पण हैं राम जी; मर्यादा की प्रतिमूर्ति हैं पुरुषों में हैं उत्तम - कर्तव्य के प्रति पूर्ण समर्पण हैं राम जी।
लगाकर हाथ मिट्टी को कई सामान गढ़ता है, हुनर के मामले में नित नए प्रतिमान गढ़ता है; उजाला बाँटता सबको अँधेरा भूलकर अपना- छुपाकर दर्द वो अपने सदा मुस्कान गढ़ता है।
नहीं हैं शब्द कैसे मैं करूँ गुणगान नारी का, बनाकर स्वयं अनुरागी हुआ भगवान नारी का; लिखा है ज्ञानियों ने भी हमारे धर्मग्रंथों में - वहीं पर देवता रहते जहाँ सम्मान नारी का।
गाँधी जी को आजकल, करते वो भी याद। जो ये भी ना जानते, क्या है गाँधीवाद॥ क्या है गाँधीवाद, जानना बहुत ज़रूरी। गाँधी जी का नाम, नहीं कोई मज़बूरी॥ गाँधी है वो सोच, बनी जो जग में आँधी। इतना भी आसान, नहीं बन पाना गाँधी॥
न हो स्पष्ट जब कुछ भी किसी से क्या कहे कोई, विवशता की पराकाष्ठा हो यदि तो क्या करे कोई; कठिन होता नहीं लड़ना अपरिचित शत्रु से लेकिन- सगे-सम्बन्धियों से ही भला कैसे लड़े कोई।
भले हो जाए कुछ भी यह कदाचित हो नहीं सकता, कभी भी पुष्प पतझड़ में सुवासित हो नहीं सकता; असहमत लाख हो कोई अटल यह सत्य है लेकिन - हो पीड़ित सत्य कितना भी पराजित हो नहीं सकता।