वस्ल की जब रात होगी, क्या करोगी।
औ' याद मेरी साथ होगी, क्या करोगी॥
जब पढ़ेगा मेरा शेर आशिक तुम्हारा,
हमसे ही मुलाक़ात होगी, क्या करोगी॥
मेरे जनाज़े का बुलावा पाओगी तब,
दर पे जब बारात होगी, क्या करोगी॥
तीन मौसम याद करना मतही मुझको,
जब मगर बरसात होगी, क्या करोगी॥
औरों को कह दोगी कि मैं अब नहीं हूँ
जब आईने से बात होगी, क्या करोगी...
- ग़ज़ब