ग़ज़ब   (ग़ज़ब)
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Joined 7 February 2017


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Joined 7 February 2017
12 APR AT 13:41

ये तीखे उल्हाने, वो सब तंज़ो ताने।
ज़माने की बातें, ज़माना ही जाने॥

नहीं कोई हासिल, किसी की नज़र का,
नहीं और हिकमत में अब दिन गवाँने॥

ये मझधार की कशमकश का असर है,
जो पड़ते हैं सबको ही वादे निभाने॥

ख़ुदा हो गया 'गर जो तू, सोचना ये,
लगेगा न तू भी हुकूमत चलाने॥

हमेशा हुआ है औ' होता रहेगा,
ज़रा सा चुभेंगे ही चावल पुराने॥

हर इक फ़लसफ़े को, यूँ बहलाती है जू',
कि बच्चों की आंतों ने मांगे हैं खाने॥

अभी भी उसी ख़्वाब में खोया है तू,
अभी तक नहीं कोई आया जगाने॥

तू सच मान बैठा न उनकी कसम को,
तुझे सीखने में लगेंगे ज़माने॥

मैं डरता हूँ जन्नत की ख़ुश फ़हमियों से,
वगरना तो मरने को हैं सौ बहाने॥

'ग़ज़ब' जो भी लिखना, मिटा कर भी जाना,
हिदायत महज़ है, तू माने न माने॥

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19 APR 2023 AT 14:14

"किस सुकूँ से चाँद है सोया नदी पे!",
सोचो मत इतना! कोई पत्थर उठाओ॥

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19 APR 2023 AT 14:05

दिलों में आग उठती है, पलक आँसू भिगोते हैं,
'ग़ज़ब' उस रात का किस्सा, कभी जो मैं सुनाता हूँ॥

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20 APR 2022 AT 2:13

धरती पर्वत, अंबर तारे, आतिश पानी तुम,
मैंने लिक्खी सारी दुनिया, लिक्खा यानी 'तुम'॥

इक मतले के हम दो मिसरे, जिसके मानी तुम,
मिसरा 'ऊला' मैं तुम्हारा, मेरे 'सानी' तुम॥

छूकर जाती हो तो कलियाँ भी शर्माती हैं,
तितली सी, फूलों से करती हो शैतानी तुम॥

तुमसे मिलकर मैंने बेहतर ख़ुदको जाना है,
है ख़ुदसे मिलके जो होती वो हैरानी तुम॥

हर पागल मजलिस में मेरे आगे फीका है,
इक ज़िद ठानी हर पागल ने, मैंने ठानी 'तुम'॥

शब्बे फुर्क़त से सहरे शिरक़त तक रोते हैं,
बिन मेरे कैसे जीती हो बोलो जानी तुम॥

पिछले जन्मों में चाहा जो, अबके पाया है,
आख़िर लो शोहदा हूँ मैं, और हो दीवानी तुम॥

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20 NOV 2021 AT 12:25

मेरी रातें हैं बदकिस्मत, मेरे दिन में बदहाली है।
मेरी पैहन भी कतरन है, मेरी हर जेब खाली है॥

मेरी ख़लवत से यारी है, मुझे ये दश्त भाता है,
मैंने नफ़रत को सींचा है, मैंने वहशत भी पाली है॥

मेरी खुशियों में झाँका तो, वो मंज़र देखकर रोए,
मेरी भूखी हैं ईदें सब, मेरी काली दिवाली है॥

हिदायत है यही मेरी, अगर कमज़ोर दिल हो तुम,
यहीं से लौट जाओ, जंग ये ताबूत वाली है॥

ये जो सब हो रहा है ये, नसीबे आम ना होगा,
यकीं मानो मेरी किस्मत नहीं इतनी भी खाली है॥

वो थोड़ा डर गया होगा, ये होना लाज़िमी भी है,
ख़ुदा के तख़्त पे मैंने, नज़र इस बार डाली है॥

तेरी दुनिया वजाहत की, कभी मुझको नहीं भाई,
तेरे होते हैं झुकते सर, तेरे मुड़ते ही गाली है॥

'ग़ज़ब' अपने अशारों का कोई हासिल ज़रा सोचो,
ये मजमा गैर अदबी है, बजानी सिर्फ ताली है॥

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17 OCT 2021 AT 3:49

उदासी क्यों यहाँ कुछ देर से ज़्यादा नहीं रुकती,
मेरे कमरे में तो बस मैं हूँ औ' मेरी किताबें हैं॥

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7 OCT 2021 AT 20:38

आसमानों में खोया रहता हूँ।
मैं गुमानों में खोया रहता हूँ॥

रूह मेरी परस्ते दश्त है,
मैं मकानों में खोया रहता हूँ॥

मानी पड़ते नहीं पल्ले मेरे,
पर ज़बानों में खोया रहता हूँ॥

दर पे आकर हैं लौटे कितने ग़म,
जब तरानों में खोया रहता हूँ॥

तुम सलामत हो, इतना है काफी,
निगहबानों में खोया रहता हूँ॥

लेके उम्मीद ये, के तुम देखो,
मेज़बानों में खोया रहता हूँ॥

हूँ 'ग़ज़ब' मैं वजूदों का मारा,
उनके तानों में खोया रहता हूँ॥

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22 SEP 2021 AT 12:11

अगर मैं कुछ नहीं कहता, तो इसका ये नहीं मतलब,
ज़ुबाँ है ही नहीं मुँह में, मैं कुछ कह भी नहीं सकता॥

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20 SEP 2021 AT 14:23

ये ख़ुदा की चाल ही है जानेमन।
कितनी लम्बी रुख़्सती है जानेमन॥
(ग़ज़ल अनुशीर्षक में।)

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18 SEP 2021 AT 10:20

दीवारें हैं खूँन म खूँ,
घर का सच तो बतलाओ॥

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