कुटुंब के विनाश का,मैं दृश्य देखता रहा,-अरिहंत जैनपूरी कविता caption में -
कुटुंब के विनाश का,मैं दृश्य देखता रहा,-अरिहंत जैनपूरी कविता caption में
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तोड़ते हैं पत्थरों को रात दिन इक फ़र्ज़ से,हम नये फ़रहाद हैं इस दौर की आवाम के, -
तोड़ते हैं पत्थरों को रात दिन इक फ़र्ज़ से,हम नये फ़रहाद हैं इस दौर की आवाम के,
एक सुर में बोलने वाले चार लोगों के बीच,एक खामोश शख़्स,जनाज़े का अनुभव करता है -
एक सुर में बोलने वाले चार लोगों के बीच,एक खामोश शख़्स,जनाज़े का अनुभव करता है
शाद कितने हैं हमारे बीच आते लोग ये,तो उदासी है नहीं मतलब हमारे दरमियाँ, -
शाद कितने हैं हमारे बीच आते लोग ये,तो उदासी है नहीं मतलब हमारे दरमियाँ,
ख़याल-ए-बद तेरा बैठा हुआ लश्कर हराना है,हक़ीक़त में तुझे अपने यकीं को आज़माना है,मुझे अवसाद के दलदल में देनी है ज़मीं तुझको,खिजां के मौसमों में फूल को ज़िंदा बचाना है, -
ख़याल-ए-बद तेरा बैठा हुआ लश्कर हराना है,हक़ीक़त में तुझे अपने यकीं को आज़माना है,मुझे अवसाद के दलदल में देनी है ज़मीं तुझको,खिजां के मौसमों में फूल को ज़िंदा बचाना है,
रौंद कर जो कुछ गया हूँ साथ नक्श-ए-पा में है,जुड़ गया है दर्द मुस्तक़बिल में मेरे जुर्म का, -
रौंद कर जो कुछ गया हूँ साथ नक्श-ए-पा में है,जुड़ गया है दर्द मुस्तक़बिल में मेरे जुर्म का,
हुकूमत के किये हर हश्र का झंडा लगाएगी,यहाँ अहल-ए-शहर परचम सिरे कासा लगाएगी,बची बीनाई सारी रौशनी-ए-रहगुज़र से है,कहाँ तक आँख मेरे पैर को धक्का लगाएगी, -
हुकूमत के किये हर हश्र का झंडा लगाएगी,यहाँ अहल-ए-शहर परचम सिरे कासा लगाएगी,बची बीनाई सारी रौशनी-ए-रहगुज़र से है,कहाँ तक आँख मेरे पैर को धक्का लगाएगी,
हम नहीं ढो पाएंगे अब दर्द को अगले जहां,इस जहाँ से सारी माफ़ी मांगकर ही जाएंगे, -
हम नहीं ढो पाएंगे अब दर्द को अगले जहां,इस जहाँ से सारी माफ़ी मांगकर ही जाएंगे,
हमें हर्ष देती कोई चीज़ अगर,किसी और के लिए दर्द है,तो शायद वो हमारा भी सुख नहीं है,वो बस एक कांटा है,जो हमनें पैनी तरफ़ से नहीं पकड़ा हुआ -
हमें हर्ष देती कोई चीज़ अगर,किसी और के लिए दर्द है,तो शायद वो हमारा भी सुख नहीं है,वो बस एक कांटा है,जो हमनें पैनी तरफ़ से नहीं पकड़ा हुआ
सुराख़ और खिड़कियों की,दरवाज़े के साथ, दीवार में मौजूदगी,प्रमाण है कि,सीमाएं पार कर पाने की आज़ादी,बराबर नहीं बटी है, -
सुराख़ और खिड़कियों की,दरवाज़े के साथ, दीवार में मौजूदगी,प्रमाण है कि,सीमाएं पार कर पाने की आज़ादी,बराबर नहीं बटी है,