ArchanA Sharma   (✒Holistic gist)
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मन की ज्वाला को, मौन शब्दों को
कागज़ पर स्याही के रूप में उकेर देती हूं
Joined 3 July 2018


मन की ज्वाला को, मौन शब्दों को
कागज़ पर स्याही के रूप में उकेर देती हूं
Joined 3 July 2018
16 JUN 2022 AT 10:55

सफ़र
"बाल्यअवस्था से लेकर‌‌ बुढ़ापे तक अनकहे लफ्जौं की ज़ुबानी" ।

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3 JUN 2022 AT 10:37

मन की बाती
आशा का दीप
"प्रज्ज्वलित" कर
मध-मध
जीवन को
प्रकाशित करतीं हैं।

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2 JUN 2022 AT 14:15

सन सन करती
उस हवा को
जो शोर कि
गहराईयों में भी
कुछ राज़ भरे
मन के तार को
सादगी से
गुनगुना जाती!

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13 OCT 2020 AT 21:26

Silent nights occur when tears are a vortex for the moon

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13 OCT 2020 AT 19:28

वहां-वहां हर्ष की किरणें
अंधकार को भेदकर
जीवन को धीरे-धीरे
झिलमिलाती है, जहां संघर्ष है
आरम्भ हमेशा
रहस्यमय परिस्थितियो और
अनगिनत पीड़ाओं से गुज़र कर
अंत कि ओर हास्य भरा होता हैं।

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13 OCT 2020 AT 12:31

जीवन के इस कुरूक्षेत्र में
स्री योगी नहीं
योद्धा बनकर खड़ी है,

बिना तलवार के
कविताओं कि आवाज़ से
बोलती नहीं
चीखती बहुत है,

जज़्बातों के आईने
उम्मीद के कंकड़ से
टूटते तो नहीं
बिखरते बहुत है,

कोशिश कि नांव
मंजिल के चाह में
जीतती तो नहीं
डर से डगमगाती बहुत है,

दर्द के समुंद्र में
डूबती बहुत हूं
लेकिन जीना छोड़ती नहीं ।

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12 OCT 2020 AT 20:15

व्यर्थ नहीं हूं मैं
समाज में सीमित हूं,
आज़ाद होकर भी
बंदिशों की कैदी हूं,
कहने को
कदम से कदम मिलाकर
चलूं वो राही हूं,
पुरस्कृत का काला साया
कलंकित भी मैं हूं

सौंदर्ययुक्त वर्णमालाओं कि
त्रुटियों की शृंखला भी मैं हूं,
हूनर से आगे बढूं
चरित्रहीनता का अंधकारमय
किस्सा भी मैं हूं।

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12 OCT 2020 AT 18:49

बस चंद बोल
प्रेम से पिघलकर
हर सीमा लांघ
बेनाम रिश्ता भी
रुह से बांधकर
निभाती हूं

कच्ची उम्र कि
नादानी से
समाज कि अग्नि में
बिन विहाही मां से
कलंकित होती हूं

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12 OCT 2020 AT 15:56

चारों तरफ भ्रष्टाचार‌ से लाचारी है,
भूख और गरीबी की संघर्षमय कहानी हैं।

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12 OCT 2020 AT 13:04

आसमां और जमीन भी मैं हूं
अंधकार, रोशनी कि छाया भी मैं हूं
लहरों सी शांत तूफान का बवंडर भी मैं हूं
शब्दों में पिरो लो फिर भी आज़ाद हूं मैं
ख़्वाबों में सजाओगे फिर भी बांध ‌न पाओगे

जिंदगी के सफ़र की वो ऊंची उड़ान हूं मैं
" कल्पना " हूं मैं

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