Aradhya..   (आराध्या)
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Joined 21 March 2018


Joined 21 March 2018
12 JUN 2019 AT 13:06





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11 JUN 2019 AT 22:05

छोड़ जाना तो बस शरारत है
उस को भी तो हमारी आदत है

देखना, लौट आएगा फिर वो
चंद रोज़ों की ये खुराफ़त है

मुझ को मतलब नहीं किसी से भी
उस की यादें मेरी रिफ़ाक़त है

मैं जो ज़िद पे अड़ी हूँ पागल सी
ये भी तो उसकी ही करामत है

कौन सुलझा रहा मेरे गेसू
सिर्फ़ उस को ही ये इजाज़त है

बात करनी नहीं मुझे उस से
मुझ को भी उससे अब शिकायत है

जानलेवा तन्हाई है जानाँ
और ख़ुद से ही ये बग़ावत है

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3 MAY 2019 AT 20:52

//..चक्र..//

बहुत कोमल होती हैं बेटियाँ
चाहे जितनी भी बड़ी क्यों ना हो
एक खरोंच भी कारण बनती
आँखों में आँसू के..
और आ कर लिपट जाती हैं माँ से

मगर पत्नी बनते ही...
भूल जाती हैं वो सारे नखरें
वो छोटी छोटी बातों में आँसू बहाना..
और भूल जाती हैं माँ का आँचल भी..
कर लेती हैं ख़ुद को नखरों से दूर..
शायद ख़ुद को
अच्छी पत्नी, अच्छी बहू साबित करने को

मगर माँ बनते ही..
सारे नखरें याद आ जाते हैं..
वो फिर कोमल बन जाती हैं
शायद पहले से भी ज़्यादा..
फिर से एक छोटी सी खरोंच
कारण बनती आँखों में आँसू के..

मगर इस बार अपने लिए नहीं....
अपने शरीर से बिछड़े हिस्से के लिए

सदियों से एक ही चक्र में
घूम रही हैं स्त्रियाँ.. !

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13 APR 2019 AT 0:10

एक गोल मेज़ है ये चाँद

जिसके एक छोर तुम बैठे हो..
हाथ में कूची लिए हुए
कभी नज़र मुझ पर दौड़ाते.
तो कभी कैनवास पर फिराते हुए..

और, दूसरे छोर मैं बैठी हूँ...
एक हाथ ठुड्डी से टिकाये
और दूसरे हाथ से
तुम्हारी नज़र से छुपने को
ऐनक ठीक करते हुए...

जानाँ,
मानो तो एक मेज़ की..
ये प्यारी सी दूरी है
हमारे दरमियाँ...

नहीं तो....
ज़मीं आसमाँ... !

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25 MAR 2019 AT 18:41

शर्म के दो पहाड़

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3 NOV 2018 AT 22:46

रात, अकेली सड़कों पे जो चल रही है वो,
रात, सब की नज़रों में अब खल रही है वो

बढ़ते रफ़्तार संग जो खिसक रहा है पल्लू
रात, लग रहा सब को कि, मचल रही है वो

ज़र्री लिबास मगर बेरंग कांप रही है ठंड में
रात, आस को हथेली बीच मसल रही है वो

कोई साया चला है, गिरते पल्लू को खींचने
रात, अंदर ही अंदर ख़ुद में गल रही है वो

कतरन तक न छोड़ा ज़िस्म में, रो पड़ा चाँद
रात, गुज़र रहा है वक़्त, मगर ढल रही है वो

लूट कर ले गया अंधेरा अस्मिता रोशनी की
रात, कालिख़ न लगे सुबह, संभल रही है वो

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28 JUL 2021 AT 18:22

भ्रम~

तारों से लटकी हुई
ये बारिशों की बूँदें...
इतनी तेज़ी से इधर उधर करती हैं...
जैसे किसी पहाड़ी तक
भक्तों को ले जाती हुई केबलकार हों...

इन्हें देख कर मैं सोचती हूँ..
इनके कानों में फुसफुसाऊँ..
वो सारी बातें जो मैंने तुमसे कभी नहीं कही..
इनकी हथेली पर रख दूँ
सारे सपने और इच्छाएं
और इन्हें विदा कर दूँ तुम्हारी ओर...
तुम्हारे कदमों में बिछ जाने के लिए..

तुम्हें अगर किसी तार से कोई बूँद दूर से
अपनी ओर आती हुई दिखे तो.
कुछ देर रुक कर सुन लेना उस को...

और अपने होंठो की छुअन दे कर
उसी तार में लौटा देना मेरी तरफ़
मंदिर से प्रसाद लेकर घर लौटते हुए
भक्तों की तरह..

लेकिन ये महज़ बारिश की बूँदें ही तो हैं
जो तुम तक आते आते
कब एक झोंके में तार से गिर कर
ज़मीं की कोख़ में समा जाए, पता नहीं...।

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23 JUL 2021 AT 12:24

मेरी सिसकियों को शुमारी मिलेगी
मेरे बाद जब मेरी चिठ्ठी मिलेगी

मुहब्बत मेरी हिस्सों में बँट चुकी है
तुझे सिर्फ़ मेरी उदासी मिलेगी

तेरे होंठ तर करते दरिया के अंदर
ज़रा झाँक इक रूह प्यासी मिलेगी

मेरे दिल की वीरान दुनिया में यारम
तेरी यादों की हुक्मरानी मिलेगी

यहाँ इश्क़ की चुलबुली लहरों को भी
किनारों की गहरी ख़मोशी मिलेगी

मसीहा मुझे ज़हर दे कर रिहा कर
शिफ़ाई से तो बस असीरी मिलेगी

ख़फ़ा मुझ से है मेरा साया, न जाने
मेरे होने की क्या गवाही मिलेगी

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22 JUL 2021 AT 15:25

दर्द आँखों से उतर जाए तो दरिया लगने लगता है
पत्थर जैसा भारी दिल कुछ हलका लगने लगता है

पेश आने लगी हूँ ख़ुद से इस हद तक सख़्त दिली से मैं
आग में जलता अपना जिस्म भी ठंडा लगने लगता है

ये तो तय है इन ज़ख्मों का कोई तौर मुदावा नइ
लेकिन तेरा माथा चूमना अच्छा लगने लगता है

जब भी टाँगा है दुनिया की आँखों को दीवारों पर
अपना घर भी जैसे मुझ को पराया लगने लगता है

अपने रिश्तों ने ही बद-किरदार किया है यूँ मुझ को
आईने के चेहरे से भी डर सा लगने लगता है

जाने वाले! ऐसे अपने पाँव पटक कर नइ जाते
घर की सारी दीवारों को धक्का लगने लगता है

अब तो तेरे हिज्र में भी वो पहले जैसी बात नहीं
अब तो तेरा वस्ल भी जैसे सूना लगने लगता है

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9 JUL 2021 AT 16:51

तुम्हारी हथेली पे सर रख कर रोने में..
जितना सुकून दिल को मिलता है..
उससे ज़्यादा डर मेरी आँखों को लगता है..
कि कहीं इन से बहते खारे पानी की वज़ह से
मिट ना जाए तुम्हारी लकीरों से तुम्हारी शोहरत के लम्हें..

और छप ना जाए उस जगह पे
मेरे कमजोर लम्हों के दाग़
हमेशा हमेशा के लिए मलाल बन कर..

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