Anuup Kamal Agrawal   (A.AG.)
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सम्भल सम्भल कदम तू रख
ठोकरों के स्वाद चख
स्वयं पर हो विश्वास तो
पहुँचेगा गंतव्य तक

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फिर अगला कदम उठाना
सम्भल कर चलना ऐ ज़िन्दगी
भागदौड़ में गिर न जाना

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नमक से घाव जल रहे हैं
डूबा जबसे मोहब्बत का सूरज
छाँव में पाँव जल रहे हैं

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YESTERDAY AT 7:37

करना क्या है ये तय नहीं है
जीवन भर रहते हैं व्यस्त
कोई सुर ताल या लय नहीं है

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17 APR AT 23:28

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17 APR AT 22:25

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17 APR AT 20:55

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17 APR AT 8:18

Like others, like others.

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17 APR AT 2:29

ऐसा लगा
जैसे कोई देख रहा था
जब मैं बदल रहा था...

जब मैं बदल रहा था,
कपड़े,
जब मैं बदल रहा था,
चेहरा,
जब मैं बदल रहा था,
दुनिया,
जब मैं बदल रहा था
ख़ुद को...

ऐसा लगा
जैसे कोई देख रहा था
मैं जब बदल रहा था...

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16 APR AT 21:14

बर्फ लेने आयी थी वो,
और मैं पिघल गया।

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