Anurag Singh  
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The "pen" knows the "pain".
Joined 25 March 2018


The "pen" knows the "pain".
Joined 25 March 2018
9 APR 2022 AT 12:17

कितना बुरा होता है
ना जब आपकी कई दिनो की मेहनत
कितने दिनो का बनाया हुआ अस्तित्व
बहुत मेहनत से बनाया हुआ इक भविष्य अचानक से ढहने लगता है
और इससे भी बुरा होता है सब ख़त्म होते चुपचाप देखते रहना
ना किसी से कुछ कह पाना ना किसी के गले लग कर अपने अंदर के दुःख को दबा पाना
सब इक दिन ख़त्म हो जाता है
दुनिया में इक ही सत्य है
वो है ख़त्म होना
फिर चाहे वो इंसान हो इंसानियत हो आपका साम्राज्य हो आपके सपने हो आपके अपने हो
या फिर आपका प्रेम ही क्यूँ ना हों!

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29 SEP 2021 AT 12:15

थोड़ी रात और गुजर जाने दो,
फ़िर जलेंगे जज्बात जैसे मरघट पर चिता जल रही हो...!!!

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2 SEP 2021 AT 10:52

कुछ लब्ज़ जो खो चुके हैं मेरी डाइरी से, वो शायद तेरी मेरी दोस्ती के अल्फाज़ थे। जो कोई ना समझा था, समझने का हम दावा ठोकते थे!
शायद उस दावे के गवाह होंगे । अब जब हममें ही इतनी दूरी  है, वो भला किस बात की गवाही देंगे!

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29 JUN 2021 AT 8:06

मैं अपने अतीत के घाव पर,
प्रेम का मरहम नही चाहता हूं ।।

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16 JUN 2021 AT 22:25

कितना बदल गया मैं, खुद को पाते पाते,
गुम सुम लहजा-बीती बातें,
कलम, किताबें और तन्हा रातें...!!!!

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3 JUN 2021 AT 2:07

अगर आज़ादी ज़िन्दगी है..
तो क्यों जिस्म में रूह की कैद को ज़िन्दगी कहते है ?
तो फिर कब परछाई को ज़िन्दगी मिलेगी ?
-अनुराग

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24 MAY 2021 AT 2:05

हमारे संवादों की जमीन पर मैंने लगाए थे,
कुछ इश्क़ के फूल जो दिन व दिन बढ़ते रहे,
मैं हर संवाद के साथ उन्हें सींचता तुम्हारी मुस्कुराहट धूप, बनकर बढ़ने में उनकी मदद करती,
मैं उनमें डालता अच्छे पलों का खाद पानी,
मगर फिर इक दिन अचानक संवादो की जमीन बंजर हो गई, कोशिश बहुत की मैंने उन्हें यादों की मिट्टी से जगाए रखने की मगर वह इश्क़ अब बिखरा पड़ा है,
वो सारे फूल अब मुरझा चुके हैं।

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21 MAY 2021 AT 1:27

ये हादसा नहीं था साजिश थी किसी कि,,,
मुझे सालों लगे हैं मोम से पत्थर होने मे...!!!

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9 MAY 2021 AT 12:13

कहीं फ़रिश्ता ग़र मिले तो कहना, खुदा पा लिया मैंने।
माँ ग़र मिले तो कहना खाना खा लिया मैंने!!!

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23 APR 2021 AT 23:32

अभी अभी एक टूटा तारा देखा, बिलकुल मेरे जैसा था,
चाँद को कोई फर्क ना पड़ा, वो हूबहू तुम्हारे जैसा था...!!

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