Anurag   (©राग)
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साप्तपदीनं सरव्यम्।💓
ज़ाती एहसास को लफ्ज़ो की शक्ल दी है
पर वो दौर अब तक नहीं देखा...
Joined 25 October 2017


साप्तपदीनं सरव्यम्।💓
ज़ाती एहसास को लफ्ज़ो की शक्ल दी है
पर वो दौर अब तक नहीं देखा...
Joined 25 October 2017
7 NOV 2021 AT 19:39

एक मैं हूँ
जो कहीं गुम हो चुका हूँ!

एक तुम हो
जो कि मुझमें
अब भी बाकी हो...

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29 OCT 2021 AT 11:41

किताबों में कैद
सारे हर्फ़ आज़ाद कर दो!
पन्नों के बीच दबकर
सारे लफ्ज़
कहीं मर ना जाएँ...

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22 OCT 2021 AT 20:26

एक बात
इतनी घुमा-फिरा कर कही गई
कि वो चली गई
दुनिया का चक्कर काटने
और तब,
उस वक्त कहने के लिए
कुछ भी नहीं बचा...

जब वो बात वापस लौटी
तब बताने के लिए
बात बहुत पुरानी हो चुकी थी
सिवाय इसके कि
वो बात
वापस लौट आई है...

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6 OCT 2021 AT 19:00

है मेरा क्या
जो मेरा है
वो कितना क्या?





अनुशीर्षक में पढ़ें।

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11 SEP 2021 AT 10:16

वो कहते हैं कि
स्त्री को कोई नहीं समझ सकता!

स्त्री प्रकृति है
और संभवतः
वो प्रकृति को समझने में
विफल रहे थे...

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10 SEP 2021 AT 9:51

और जब
तुम ये पढ़ोगी
तो पाओगी कि
पन्ने पर
इतना सब
लिख देने के बाद भी
बहुत-सी जगह खाली है!

तब शायद
तुम जान जाओ कि
मैं बातें पूरी ना कर
आधी-अधूरी छोड़ देता हूँ...

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14 AUG 2021 AT 20:24

पहले-पहले इश्क ने
दीवार पर की है नक्काशी,

गर ये इश्क जुदा हुआ
तो दीवार भी ढह जाएगी...

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7 AUG 2021 AT 9:45

मैं जिसके सामने था,
वो मुसीबत थी!
तुमको सामने से जो दिखा,
बस एक मंज़र था...

मेरे साथ जो कुछ हुआ,
हादसा था!
तुम्हारे सामने जो भी हुआ,
बस वाकया था...

मुझको हादसे ने जो दिया,
अंजाम था!
तुमको हादसे से जो मिला,
धुँधली याद थी...

मुझको अंजाम से जो मिला,
सिर्फ दर्द था!
तुमको अंजाम से जो मिला,
वो सबक था...

हादसे के बाद मैं
अपने रास्ते था,
वाकिए के बाद तुम भी
अपने रास्ते थे...

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31 JUL 2021 AT 12:07

मैं
सृष्टि का अंश तथा
पारिस्थितिकी का
अंग होने के बाद भी
परित्यक्त की भांँति
प्रसिद्धि से कोसों दूर
विलुप्ति के कगार पर खड़ा
'दुर्लभ' हूँ!

पूरी तरह से निचोड़ लेने और
निथारकर फेंकने के बाद भी
मैं रिक्त नहीं,
'शेष' हूँ
किसी खाली बोतल की
तली पर इकट्ठा हुई
पानी की बूंदों की तरह।

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28 JUL 2021 AT 13:25

उसके आँसू देख के मैने माना कि
बारिश का पानी भी खारा होता है।

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