Anurag Pandey   (अनुराग पाण्डेय "काशी")
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Joined 8 September 2017


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7 AUG 2021 AT 18:08

पल्लवित हो गया होगा कोई तो दर्द सीने में
वगरना राग सा अनुराग तुम खोने ना यूं देते
चलो छोड़ो भी जाने दो अमा क्या रह गया है अब 
फरक पड़ता अगर तुमको तो दूर होने ना यूं देते।

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23 MAY 2021 AT 13:12

क़ैद हो कर यूँ क़फ़स में सनम की बाहों के,
साँस मिल जाएगी या,आज मर ही जायेंगे 
ज़िन्दगी चल रही थी यूहीं एक ढर्रे पे
तू जो आयी है इसे गुलिस्तां बनाएंगे।

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22 MAY 2021 AT 0:24

विरह की हद तक पहुँच कर भी
उसकी यादों को दिल में संजोए रखना ही असल प्रेम है!

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12 APR 2021 AT 22:05

देखो वही जो मैं दिखाना चाहता हूं
हालत असल की देख कर तुम रो पड़ोगी।

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15 MAR 2021 AT 19:15

मेरा सब कुछ तुम्हारा हो रहा है,
तुम्हारा सब किनारा हो रहा है,
मेरा तो गम भी अब मेरा रहा ना,
मुझे किस बात का गम हो रहा है।

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14 MAR 2021 AT 12:01

कुछ ख़्वाब दरीचे पर आकर यूं आँख उठाकर तकते हैं
उन ख़्वाब को हाथों पर लेकर हम दर दर भटका करते हैं।

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15 OCT 2020 AT 14:45

.....

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19 SEP 2020 AT 10:43

दे जानी है तेरे बदन पर
और छोड़ जानी है
अपनी सांसों की गर्माहट
हमेशा के लिए तेरे पास ताकि
हमारे आलिंगन का एहसास
याद दिलाता रहे तुम्हे
कि उससे बड़ा सुख
दुनिया में कुछ भी नहीं।

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26 DEC 2019 AT 16:52

तेरी बाहों के सिवा और कुछ भाता ही नहीं,
लोग कहते हैं हमें प्यार तो आता ही नहीं।


जबीं को चूम लें या चूम लें तेरे लबों को
तेरा चेहरा मेरे ज़ेहन से क्यूँ जाता ही नहीं।


क्यों मेरा दिन भी तेरे नाम पे गुज़रता है,
क्यों तेरे रात के पहरों में मैं आता ही नहीं।


तेरी बाहों का सुकूँ अब कहाँ नसीब मुझे,
अब मुझे गोद में रख के तू सुलाता ही नहीं

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24 JUL 2019 AT 11:50

मैं सांस भरकर के तुझको देखूँ,
या सांस भरना ही भूल जाऊँ

तू मुझको आकर गले लगा ले 
मैं तेरी बाँहों में डूब जाऊँ।

तू मेरी आँखों को आइना कर,
मैं तेरी आँखों में गोते खाऊँ।

अजीब असमंजस हो रखी है,
मैं तुझको देखूँ या देखता जाऊँ?

तू मुझको अफसुर्दगी में मिली थी,
मैं तुझको खुशियों की चाभी थमाऊँ।

मैं तुझको सदियों से लिखता रहा हूँ,
दिल कर रहा है लिखता ही जाऊँ।

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