झुकती, मुड़ती, हिलती-डुलती कलियां, फूलों की
बहती, मद्धम, धीमे-धीमे, खुशबू, फूलों की ।
बिखरे पत्ते, उलझी सुलझी, फैली शाखें
उड़ते पंछी, के संग, फिरे मेरी आंखें
.
भीतर बैठा मैं, जीवन भी, अटका-अटका सा
नैना बाहर, और मन घूमे, भटका-भटका सा
सड़कें खाली हैं, और सुनसान पड़े रस्ते
बच्चे घर पर बैठें हैं, रखे हुए बस्ते
खाली हैं मैदान, भीड़ अब कम सी है
खुशियों की थी, आँखे जो, अब वो नम सी हैं
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घर से हैं कुछ, दूर, लिए यादें मन में
ढाढ़स देता है, साहस, जीवन के रण में
होगी, वर्षा घनघोर, उसे भी झेलेंगे
निर्भीक बनेंगे, तूफ़ानों से खेलेंगे
पर्वत से दूर नहीं हम, पर्वत, मन में है
गंगा कावेरी, का जल, मन में तन में है,
रिपु से लड़ने को, हम तरकश के तीर बनेंगे
विपदा से लड़ लड़कर ही, तो हम वीर बनेंगे
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फिर से, तितली-भौंरे, फूलों पर गाएँगी
फिर से, सूरज की किरणें, जीवन लाएंगी
इस दरवाजे के पार, दिखाई देता है जीवन
बादल, पंछी, तालाब, हवाओं का, जैसे संगम
दूर क्षितिज, पर्वत आकाश से, जुड़ता सा
मन, भटका-भटका, पेंग लगाए उड़ता सा
.
जो गिरे हुए हैं, आज
खड़े होंगे
फिर से।
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जल से, जीवन से
ये तालाब, भरे होंगे
फिर से
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ये पेड़ हरे होंगे फिर से
- अनुराग नेगी
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