*लालटेन*
बहुत रात हुई,
चराग बुझने को है,
रात भी स्याह है इतनी कि
चाँदनी तक छिप गयी है
सर्द रात है,
कोहरा भी बहुत तेज पड़ रहा है,
हवाओं के ठंडे छुवन से
शाखों के नए पत्ते सिकुड़कर
अपने घरों में बैठे हुए हैं
लेकिन,
मुझे थामे ये बुढ़िया
बैठी हुई है ऐसे ही कई सालों से,
बरामदे में, बिना कम्बल ओढ़े
और पूछती रहती है सन्नाटों से
बस एक ये ही सवाल हर रोज कि
"इतनी रात हो गई नज़ीब अबतक नहीं आया?"
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