कुछ थर्राया, कुछ गला घोंटा अपने गहमें जज्बातों का,
जब पता लगा न जिक्र हुआ भगत सिंह की बातों का,
क्या कही सुनी बातों से पाया था हमने आजादी को,
या कुछ झूल गए,रोक गए आजादी से पहले की बर्बादी को,
क्या खूब कहोगे तुम खुद को की तुम गांधीवादी हो,
एक गाल पे थप्पड़ पड़ने पर दूजा आगे करने वाले हो,
वो देख मौत सामने न कतराए क्या तुम भी ऐसे इंकलाबी हो,
बॉम्ब फेक के न नुकसान पहुंचाए क्या ऐसे अहिंसावादी हो।।
लगता है भूल गए तुम, जिसे बसना चाहिए हर हिन्दुस्तानी में,
कर लो याद तुम उसे भी, जो झूल गया 23 की नौजवानी में।।
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