ठहरे हुए लम्हे सा था वो वक़्त,
जब मेरी बातों को तू बिना कहे समझ जाया करती थी,
नजरें मिलतीं थीं तो पलकें तेरी झुक जाया करतीं थीं,
तेरे लिए मेरे लबों की खुशी शायद सब कुछ हुआ करती थी,
मोहब्बत मैं भी तुझसे बेशुमार और इससे ज्यादा करता था,
वक़्त का खेल ही था जो तेरी मोहब्बत और नजदीकियाँ बढ़तीं गयीं,
मैंने भी तेरी नादानी समझकर सब कुछ होना दिया,
फिर वक़्त ने अपना ज़िंदगी का एक और पन्ना पलटा,
और एक अजीब से मोड़ पे लाकर खड़ा कर दिया,
हाथों में तेरे किसी और का हाथ था और
मैं तन्हा ।।
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